भूर्ण-हत्या- कैसे बना दानव - मानव ?
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मेरे विचार
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प्लिज मम्मा, मुझे मत मारो, मुझे भी भैया के साथ खेलना है।
भारत की संस्कृति विश्व की सर्वोच संस्कृति है. संस्कृति हमारी धरोहर है, विरासत है, अंहिसा की प्रतिध्वनी में फलने वाली इस देश की धरती पर आज चारो तरफ हिंसा का नाद है. कहते है यह इक्कस्वी सदी महिलाओं की है. प्रश्न उठाता है फैशन , नशा, भ्रूण हत्या, अनुशासनहीनता जीवन, अनावश्यक संग्रह की मनोवृति जैसी प्रवृतियो में तेजी से बढ़ती हुई महिलाये क्या अपनी संस्कृति का सम्यक निर्वाह कर रही है ? भ्रूण-हत्या इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी है.
उड़न तश्तरी .... समीर लालजी ने दो दिन पहले एक पोस्ट लिखी थी , उसमे समीरजी ने लिखते हुए कहा - "शायद कहीं आपको छुए/ झकझोरे". पूरा का पूरा मनडा ही खर-खर हिल गया . कविता के माध्यम से समीर जी ने भ्रूण हत्या पर जो त्रासदी बया की आँसूओं की धार मेरी आँखों से भी निकल पडी और गंगा में समाहित हो गई. आप भी देखे समीरजी ने व्यथित मन से जो भाव प्रकट किये और शब्दों के माध्यम से कन्याओ की भ्रूण हत्या पर समाज को जो फटकार लगाईं वो प्रंसनीय तो है ही वर्तमान में इस ओर कठोर रूप से अजन्मे बालको की हत्याओके विरोद्ध में जनचेतना के लिए बेहद मार्मिक और सशक्त अभिव्यक्ति अग्रषित की है.
बुजुर्ग बताते थे कि सपनों का आधार आपके दिमाग के कोने में पड़े वो विचार होते हैं जिन्हें आप पूरा होता देखना चाहते हैं किन्तु जागृत अवस्था में कुछ कर नहीं पाते. कह नहीं पाते और मूक दर्शक बने उन्हें अपने आसपास होता देखते रहते हैं. ऐसे विचार सपनों में आकर आपको झकझोरते हैं, जगाते हैं.
एक कविता, बिना किसी भूमिका के, प्रस्तुत करना चाह रहा था, इत्मिनान से पढ़ें और शायद कहीं आपको छुए/ झकझोरे, तो दाद दिजियेगा.
गंगा,
जो शंकर की जटाओं से
नहीं निकली..
वो है
एक उस क्न्या के
आँसूओं की धार
जो जन्मीं ही नहीं..
सांस लेने के पहले
उसे मार दिया गया..
भ्रूण में ही..
शायद इसीलिये
गंगा के होते हुए भी
वो धरती
मरुस्थल है...........
पराया देश, पर राज भाटिया जी ने भी भ्रूण हत्या जैसे कृत्य को कंस की संज्ञा दी . उन्होंने समाज से अपने दर्द भरे दिल से की प्रश्रन लिख छोड है, जो विचार करने योग्य है. बडे ही दुखी मन से पर गुस्से से समाज में भ्रूण हत्या जैसे जधन्य अपराध पर लिख मुझे यह पोस्ट लिखने को प्रेरित किया है. आप सभी देखे राज भाटियाजी ने समाज में भ्रूण हत्या को लेकर मानव कैसे बना दानव ? उन्होंने इसे एक आन्दोलन के रूप में लिखा है जो एक मानव एवं स्रष्टि के हित की बात है.
जो मां बाप कोख मै ही बेटी को मारे, उसे आप क्या कहेगे ? जो ड्रा पेट मे किसी बच्ची को जन्म से पहले ही मार दे उसे आप क्या कहेगे ?
अजन्मे को मोत के मुंह मे धकेलना क्या अच्छा है, अगर वो बच्ची है तो क्या वो कलंक है ? अरे जिस के पेट मै है वो भी तो कभी बच्ची थी.... जो परिवार ऎसा करे उस परिवार से नाता तोड ले.... रहने दे उन्हे अकेला... उन के लडके को कोई बहू मत दो... आओ मिल कर इन गंदे कृत को रोके.... आओ मिल कर हम इस कंस को मारे..
भ्रूण हत्या यह मानव समाज में ऐसा कोढ है जो संक्रमण की तरह फ़ैलता जा रहा है, जो सभी समाज के भाल पर कलंक टीका है. आज एबोर्सन एक फैशन बन गया है. जो माँ ममता की मूर्त होती है अपनी ममता के विस्तरत आंचल में बच्चे को दुलारने-सहलाने वाली माँ ऐसा जधन्य अपराध कर सकती है. कल्पना से परे की बात है. जिसके उर में बेपनाह ममत्व हिलोरे लेता है, कैसे वह उस संतति की निर्मम ता से ह्त्या करवाकर "माँ" कहलाना कितनी विडम्बना है. इसमे पुरुष में बच नहीं सकता क्यों की इस अपराध में वो भी बराबर का हिस्सेदार है.
आज हम सबको मिल बैठकर चिन्तन विचार विमर्श करना है की प्रक्रति ने सहज स्वाभाविक रूप में माँ की ममता के आंचल की ओर अग्रसर किया , उस पर तुषारापात ओर कुठाराधात क्यों ?
लोगो मुझे "टाइगर" कहते है . आप मनुष्य मुझे जानवर की श्रेणी में गिनते है. पर हमारे जानवरों में अपने अजन्मे बच्चो को मारने की कोई रिवाज नहीं है. फिर यह सवाल आप के लिए जानवर कोन हुआ ?
आप या हम ?