यह कैसी खिलवाड... ? किससे खिलवाड... ? क्यो खिलवाड... ? हिन्दी ब्लोग संसार मे एन्वायरमेन्ट गडबल झाले!
कुछ दिनो से हिन्दी ब्लोग संसार मे कई तरह के विवाद देखने को मिले। किसी ब्लोगर द्वारा
ब्लोगवाणी के उपर "पसंद-बटन" के बेजा उपयोग पर सवालिया निशान दागे, तो तुरंत-फुरत ब्लोगवाणी ने त्यागपत्र दे दिया। राजनेता होते तो कुर्सी छोडते नही। किन्तु ब्लोगवाणी अपने आपको बंद कर नैतिकता का परिचय देने से नही चुकी। ब्लोगिंग के लोकतन्त्र मे यह "ब्लोगशक्ती" का परिचय था। मानमनुवाल के बाद ब्लोगवाणी फिर प्रकट हुई तब कही जा के हिंदी ब्लोगर काले धब्बे से बच पाए।
अब
चिठ्ठा-चर्चा भी विवादो से परे नही रही। कभी चर्चा में तो कभी टिप्पणी में, चर्चाकार
शांतिप्रिय ब्लॉगर्स का नाम ले लेकर उन्हें उकसाने का काम लगातार करते रहते है ताकि वो भड़क उठें और बलवा मचे साथ ही साथ "इस चर्चा से अजी टिपण्णी चर्चा तो भूले बिसरे गीत बन चुकी है".
. चच्चा टिप्पू सिंह बडे ही दुखी भाव से पोस्ट लिखते है, और ब्लोगिग की दुकान ही बन्द करना चाहते है। यह कैसी विडम्बना है की मुठ्ठी भर हिन्दी ब्लोगरो के संसार मे भी लोग मुखोटा लगाऍ हुऍ लिखियाते-टिपियाते घुमते है।
कुछ टीकाकार
"चिठाचर्चा" पर, "चच्चा टिप्पू" के "टिप्पणी चर्चा" के ब्लोग टेम्पलेट को गुमराहकारक मानते है, वो ही टीकाकारो को "चच्चा टिप्पू" के
"टिप्पणी चर्चा" के ब्लोग पर जाकर उन्हे ढाढस बंधाते देखा गया। यह छदम वेश क्यो ? ब्लोग इतिहास उन्हे अपने पन्नो पर हरगिज इबारत लिखने की इजाजत नही देता जो ब्लोगिंग को रणभूमि बनाने की भावना रख बार बार वही गलती दोहराते है। दास्ताने उन्ही की याद रहती है जो मोत को हथेली पर थामकर उसे बेफिक्र, बेपरवाह, बिंदास ,होकर सच की तलाश मे हिंदी ब्लोगिंग के सफर मे सागर के लहरो की तरह हमेशा-हमेशा चलते रहते है। जब आप नई लकीर अपने ब्लोग पर खीच रहे होते है तब मुखालफती ना हो तो दुनिया का सबसे बडा सुखद आश्चर्य होगा। लेकिन खिलाफत और विद्रोह के उस मोड पर खडे जाने कितनी हस्तिया लडखडा जाती है। होश हवास खो बैठती है, लेकिन आप हम हरगिज ऐसा ना होने दे।
हिंदीजनो! मेरे मित्रो! ब्लोगरो!
चुनोतियो से घबराकर भागने के बजाय बुलंद जज्बातो से मुकाबला करना हमेशा हमारा शगल बना रहे, ऐसा लक्ष्य अपेक्षित है।
परवाह नही अगर जो जमाना खिलाफ हो
राह वह चलुगा जो नेक और साफ हो॥
इस नाजुक दोर के चोराहे पर खडी हिंदी ब्लोगिंग, फर्श पर सिसक-सिसक कर मोत के दिन को करीब आते देखने को बेबस है।
"मै नंबर वन"-"मै नंबर वन", के चक्कर मे हिंदी ब्लोगिंग सामन्तवादी विचारधाराओ के भेट ना चढ जाऍ। हमे क्वान्टिटि की बजाय क्वालिटी,शासन के साथ अनुसासन की जरुरत महसुस हो। अनुशासन का डंडा चलाने वालो को सबसे पहले
"निज पर शासन फिर अनुशासन" की कहावत पर गौर फरमाना चाहिऍ। हमे हिंदी ब्लोगिंग की महान धरोहरो के साथ पंगे -बाजी लेने से बचना चाहिऍ तो उन्हे भी बार बार जुने पुराने होने का वास्ता देने की जरुरत नही।
"ओल्ड इज गोल्ड" वाली काहवत सब जगह सही नही ठहरती, जैसे दवाई की शिशी पर तारीख पुरानी हो जाती है तो उसे
एक्सपाईरी माना जाता है। कभी कभी नई चीजे भी मुल्यवान होती है-सार्थक होती है।
हर व्यक्ती का अपना महत्व है। व्यक्ती अपने गुण से, अपने व्यक्तित्व से, अपने चरित्र व्यवहार से जाना जाता है, यह सभी बाते ही आदमी को ऊँचा बनाती है, ना कि आप फंला क्षैत्र के जुने-पुराने लिखाडे हो।
इस धुआधार अंधेरो से गुजरने के लिए
सूने दिल से कोई मशाल तो जलानी होगी।
हिंदी ब्लोगिंग को दोहरेपन के शिकंजो से आजाद करना पडेगा। यह लडाई किसलिऐ
? कोनसी विरासत हाथ लगने की आश है हमे
? क्या हम मिलजुलकर, भाईचारे से, एक दुसरे की मान-मर्यादाओ एवम स्वाभिमान का ख्याल रखते हुऍ ब्लोगिंग नही कर सकते
? अपेक्षा मात्र इतनी है, की हम सभी इमानदारी से हिंदी चिठठाकारी के चहुमुखी विकास पर ध्यान केन्द्रित करे।
समय-समय पर नऐ ब्लोगरो को भी प्रोत्साहीत करे। अपनी चर्चाओ मे उन्हे सम्मिलित करके, उन्हे मार्गदर्शन दे। झगडा कब उत्पन होता है, जब हम किसी की बार बार उपेक्षा करे। अपनी दुकान की मिठाई, रिस्तेदारो मे मिलबांटकर खाने से पडोसी खुश नही होता, उसके मुंह मे भी मिठास पहुचे अपेक्षा बनी रहती है।
सच पहले भी वो ही था जो आज है और कल रहेगा। जो लोग लकीर खीचकर उसे आखिरी रास्ता मान बैठते है उन्हे बैकवर्ड होने से, पिछडने से कोई रोक नही सकता। मेरी निगाह मे चिठठाकारी जीवन मे मर्यादा निहायत जरुरी है। यह तो वैसे ही है कि आप तरक्कियो के रास्तो को अपने हाथो से बनाते है, उन्हे बुलन्दियो पर शुमार करने के लिए अगली पीढी के हाथो सुपुर्द कर देते है। यही उत्तम तरिका है ओर मंगलमय भी .
आज हमे गर्व होना चाहिऐ की
समीरलालजी, ज्ञानदत्तजी, रामपुरीयाजी, शास्त्रीजी, अरविन्द मिश्राजी, राज भाटिय़ा. जैसे वरिष्ट् लोगो का साथ मिल रहा है तो
आशिषजी खन्डेलवाल, शिवकुमारजी, सन्जयजी बैगानी, रतनसिहजी, जैसे युवा प्रतिभावानो का मार्ग दर्शन भी मिल रहा है।
इस इरादे के साथ..........................
तू चल रे नजीर
इस तरह से कारवॉ के साथ
जब तू न चल सके तो तेरी दास्ता चले।
आप मेरी भावनाओं में छुपे दर्द को को समझे. कोई व्यक्ति विशेष के लिए यह बाते नहीं कही गई है. मात्र ब्लोगिग एवम हिंदी ब्लोगरो में एक दूसरो के प्रति आदर भाव, प्रेम भाव, की चाहत लिए यह पोस्ट को लिखा गया है. मेरी गुजारिश है सभी छ: हजार हिंदी चिठाकारो से की वो मेरे विचारों की मूल हार्द को जाने पहचाने व सभी दो शब्द टिपण्णी के माध्यम से शपथ ले......................
* आज से हम सभी हिंदी चिठठाकार एक दूसरो को मान-सम्मान देंगे,ओर लेंगे.
* अपने ब्लोगिंग जीवन के व्यवहार में स्वस्थ प्रतिशपर्धा को अपनाएगे.
* विषय से हटकर किसी साथी ब्लोगर के खिलाफ़ ना लिखेगे, ना ही उसका समर्थन करेगे.
* वरिष्ठ ब्लोगर,छोटो को प्यार देगे....छोटे, मान-सम्मान देकर वरिष्ठ ब्लोगरो का आशीष एवम स्नेह पाने का लक्ष्य बनाए