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मूल्य-परम्परा-संस्कार-प्रतिष्टा-कुल परम्परा

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मैंने इंशानी जीवन के कई पहलुओ को एक ही घटना मे तोलने का प्रयास किया. करीब से एक बाप बेटे के कई उलझनों को मैने समाज परिवार ओर व्यक्ति के वैज्ञानिक तथ्यों के करीब महसूस किया. शायद जीवन का यह फलसफा हमारे समझ में आ जाए तो आपसी कलह मनमुटाव परिवारिक चिंताए दूर हो सकती है.


किसी के चेतन मन तथा अवचेतन मन में भयंकर संघर्ष छिड़ा हुआ था. चेतन मन उसे लडकी की ओर खींच रहा था तथा अवचेतन मन अपनी कुल परम्परा की ओर .उसकी मनो दशा इतनी मोहग्रस्त हो गई थी कि उसे ना तो दूकान पर शान्ति मिलती न ही घर पर.

मूल्य-: मूल्य तो हमेशा ही सापेक्ष होते है. एक समय में जिस चीज का जो मूल्य होता है ,दुसरे समय में उसका इतना मूल्य नही होता है. एक व्यक्ति के लिए जिस चीज का मूल्य होता है दुसरे के लिए नही भी होता है!

परम्परा -: हमक कुलीन परम्परा को वहन कर रहे है. हम एक परिवार की सीमा में भी आबद्ध है. इस द्रष्टि से तुम्हारा निर्णय मुझे ओर मेरा निर्णय तुम्हे प्रभावित करता ही है.

संस्कार-: संस्कारों पर किसी वर्ग विशेष का अधिकार नही हो सकता! एक धनी ओर उच्च कुल में पैदा होने वाले व्यक्ति के संस्कार भी खोटे हो सकते है ओर एक गरीब तथा नीच माने जाने वाले कुल में पैदा होने वाले व्यक्ति के संस्कार भी अच्छे हो सकते है.

प्रतिष्टा -: मै यही सोच रहा हु कि परिवार की प्रतिष्ठा तथा व्यक्ति की प्रतिष्ठा में दुसरे शब्द में समाज की प्रतिष्ठा ओर व्यक्ति की प्रतिष्ठा में कोन ज्यादा मूल्यवान है ?
शायद समाज व्यक्ति की रक्षा करता है व्यक्ति को समाज की सुरक्षा रक्षा करनी चाहिए.दोनों मिलकर ही एक सुव्यवस्था को उजागर करते है.

क्षणिक -: शादी कोई ऐसा क्षणिक देह बंधन नही है जिसे व्यक्ति हडबडी में जोड़ ले .बल्कि यह तो एक ऐसा आत्मीय सम्बन्ध है जिसे बहुत सोच समझकर निर्धारित करना पड़ता है.

समाज सरचना का यह गहरा एवं गुढ़ रहस्य वैज्ञानिक आधार लिए हुए प्रतीत होता है.आजकल लव मैरिज आम बात हो गई है. हरेक समाज में यह प्रचलन चल पड़ा है. ऐसे में युवाजन जाती, धर्म, गोत्र, का पलायन कर अपने सुखी वैवाहिक जीवन क़ी अपेक्षा करते है. कुछ रिश्ते कामीयाबी के शिखर पर चढ़ भी जाते है कुछ रिस्तो में विराम सा आजाता है. घर परिवार एवं समाज के बनाए नियमो को हमारी भलाई एवं रक्षा हेतु बनाए गए थे पर आजकल धडल्ले से युवाजन उक्त नियमो को तोड़ मरोड़ रहे है. कारण बताते है-" हम शिक्षित है, २१वी शदी में रहते है, ओर हम हमारा भला बुरा समझते है." यह तर्क ही सही नही है ! जन्मदाता विवश है सामाजिक परम्पराओं क़ी अहवेलनाओ को देखने के लिए ...युवाजनो द्वारा ऐसी बातो को किसी दकियानूसी विचारों का वास्ता देना यह उनकी भूल साबित होने जैसा है.

अंत में एक पक्ति में अपनी बात खत्म करना चाहता हु
"सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से,
राष्ट्र्य स्वयम सुधरेगा !!"

पढ़ना है तो पिटना होगा!!!

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विदेशी वस्तुए , विदेशी कोच , विदेशी डिग्री , यह हमारी गुलाम मानसिकता का परिणाम है. विदेश में पढ़े - लिखे की इज्जत ओर घरेलू सस्थानों में पढ़े लिखे हेय नजर से देखने की प्रवर्ती का नतीजा है आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हमले .


२०२० में महाशक्ति बनाने का सपना संजोने वाले भारत में ऐसे शिक्षा सस्थानों का निर्माण क्यों नहीं किया जाता जँहा आस्ट्रेलियन एवं अमेरिकन छात्र पढ़ने को गोरव समझे ?


वहा की सरकार भारतीय छात्रों पर  हमलो को नस्लवाद नहीं मानती . भारतीय हुकमरान कठोर रुख अपनाने की बजाय पिलपीली भाषा में विरोध जताकर क्या साबित करना चाहती है ?

हद तो तब हो गई जब २१ वर्षीय नितिन गर्ग के पेट में चाक़ू घोपकर उसकी ह्त्या कर दी गई . ओर तो ओर पटियाला के युवक रणजोध सिंह को जलाकर मार दिया.
अब तक भारतीयों पर हमले के १०० मामले प्रकाश में आए किन्तु दुःख इस बात का है की आस्ट्रेलियन सरकार विफल रही इस नस्लवादी आंतक को रोकने में,वही भारतीय प्रसशान लाचार दिख रहा है, इस पुरे प्रकरण पर.


अब यह भारत की प्रतिष्ठा का,  सम्मान का सवाल है. अपने बच्चो के जीवन का सवाल बन गयाहै. ऐसे में हमे कठोर रुख अपनाना होगा. हमे आस्ट्रेलियन निर्मित वस्तुओ का बहिष्कार करना चाहिए. हमे आस्ट्रेलियन क्रिकेटरो के साथ कोई मैच नहीं खेलना चाहिए एवं उसका विरोध करना चाहिए . समस्त व्यापारिक सम्बन्ध विच्छेद कर देने चाहिए...

राक्षसों ने ब्लागरों को लपेटा अपने मायाजाल में, मुंबई ब्लागर मीट

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 पिछले दिनों मुंबई में ब्लोगर मीट हुई थी. उसमे नामी-गिरामी चिठाकारो ने अपनी हिस्सेदारी निभाई थी. विवेक रहस्तोगी जी के निमंत्रण पर मै भी पहुचा उपरोक्त मीट में. मुझसे जो बन पडा सहकार किया. 
जब मै आज मुंबई पहुचकर  देखा की  एक हिंदी ब्लॉग " भडास" में किसी अनुप मंडल ने घटिया  तरह की भाषा का उपयोग कर कुछ यू लिखा की दोस्तों मेरा मन ही टुटा सा गया. आप भी पढ़े इस लिंक कों दबाकर.
राक्षसों ने ब्लागरों को लपेटा अपने मायाजाल में, मुंबई ब्लागर मीट
इस तरह की बातो से हिंदी चिठाकारी से में उकता गया हू. सोच रहा हू. अब 
हिंदी चिठाकारी से अलविदा कहने का मेरा समय आ गया है.  शायद यहाँ  अब शरीफ आदमियों के लिए कोई जगह ही नहीं बसी है. बड़ी दुर्भाग्य की बात है की कुछ लोग कुंठित मन से आरोप प्रत्यारोप करने से पहरेज नहीं करते . भले आदमी की इज्जत लेना अब यहाँ रिवाज बन पड़ा है. 
ओर मजेदार बात तो यह है की कोई नामचिन्ह ब्लोगर उपरोक्त पोस्ट पर कमेन्ट के माध्यम से लिखता है "नाईस"अब इस पर अधिक क्या लिखू   समझ के परे है.

हिन्दी ब्लोगिग मे प्रदुषण का लेवल बढा

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यह कैसी खिलवाड... ? किससे खिलवाड... ? क्यो खिलवाड... ? हिन्दी ब्लोग संसार मे एन्वायरमेन्ट गडबल झाले! 

कुछ दिनो से हिन्दी ब्लोग संसार मे कई तरह के विवाद देखने को मिले। किसी ब्लोगर द्वारा ब्लोगवाणी के उपर "पसंद-बटन" के बेजा उपयोग पर सवालिया निशान दागे, तो तुरंत-फुरत ब्लोगवाणी ने त्यागपत्र दे दिया। राजनेता होते तो कुर्सी छोडते नही। किन्तु ब्लोगवाणी अपने आपको बंद कर नैतिकता का परिचय देने से नही चुकी। ब्लोगिंग के लोकतन्त्र मे यह "ब्लोगशक्ती" का परिचय था। मानमनुवाल के बाद ब्लोगवाणी फिर प्रकट हुई तब कही जा के हिंदी ब्लोगर काले धब्बे से बच पाए।
अब चिठ्ठा-चर्चा भी विवादो से परे नही रही। कभी चर्चा में तो कभी टिप्पणी में, चर्चाकार शांतिप्रिय ब्लॉगर्स का नाम ले लेकर उन्हें उकसाने का काम लगातार करते रहते है ताकि वो भड़क उठें और बलवा मचे साथ ही साथ "इस चर्चा से अजी टिपण्णी चर्चा तो भूले बिसरे गीत बन चुकी है".चच्चा टिप्पू सिंह बडे ही दुखी भाव से पोस्ट लिखते है, और ब्लोगिग की दुकान ही बन्द करना चाहते है।  यह कैसी विडम्बना  है की मुठ्ठी भर हिन्दी ब्लोगरो के संसार  मे भी लोग मुखोटा लगाऍ हुऍ लिखियाते-टिपियाते घुमते है।
कुछ टीकाकार "चिठाचर्चा" पर, "चच्चा टिप्पू" के "टिप्पणी चर्चा" के ब्लोग टेम्पलेट को गुमराहकारक मानते  है,  वो ही टीकाकारो को "चच्चा टिप्पू" के "टिप्पणी चर्चा" के ब्लोग पर जाकर उन्हे ढाढस बंधाते  देखा गया। यह छदम वेश क्यो ? ब्लोग इतिहास उन्हे अपने पन्नो पर हरगिज इबारत लिखने की इजाजत नही देता जो  ब्लोगिंग  को रणभूमि बनाने की भावना रख बार बार वही गलती दोहराते है। दास्ताने उन्ही की याद रहती है जो मोत को हथेली पर थामकर उसे बेफिक्र, बेपरवाह, बिंदास ,होकर सच की तलाश मे हिंदी  ब्लोगिंग  के सफर मे सागर के लहरो  की तरह हमेशा-हमेशा चलते रहते है।  जब आप नई लकीर अपने ब्लोग पर खीच रहे होते है तब मुखालफती ना हो तो दुनिया का सबसे बडा सुखद आश्चर्य होगा। लेकिन खिलाफत और विद्रोह के उस मोड पर खडे  जाने कितनी हस्तिया लडखडा जाती है। होश हवास खो बैठती है, लेकिन आप हम हरगिज ऐसा ना होने दे।
हिंदीजनो! मेरे मित्रो! ब्लोगरो!
चुनोतियो से घबराकर भागने के बजाय बुलंद जज्बातो से मुकाबला करना हमेशा हमारा शगल बना रहे, ऐसा लक्ष्य अपेक्षित है।

परवाह नही अगर जो जमाना खिलाफ हो
राह वह चलुगा जो नेक और साफ हो॥

इस नाजुक दोर के चोराहे पर खडी हिंदी ब्लोगिंग, फर्श पर सिसक-सिसक कर मोत के दिन को करीब आते  देखने को बेबस है। "मै नंबर वन"-"मै नंबर  वन", के चक्कर मे हिंदी ब्लोगिंग  सामन्तवादी  विचारधाराओ के भेट ना चढ जाऍ। हमे क्वान्टिटि  की बजाय क्वालिटी,शासन के साथ अनुसासन की जरुरत महसुस हो। अनुशासन का डंडा  चलाने वालो को सबसे पहले "निज पर शासन फिर अनुशासन" की कहावत पर गौर फरमाना चाहिऍ। हमे हिंदी ब्लोगिंग  की महान धरोहरो के साथ पंगे -बाजी लेने से बचना चाहिऍ तो उन्हे भी बार बार जुने पुराने होने का वास्ता देने की जरुरत नही। "ओल्ड इज गोल्ड" वाली काहवत सब जगह सही नही ठहरती, जैसे दवाई की शिशी पर तारीख पुरानी हो जाती है तो उसे एक्सपाईरी माना जाता है। कभी कभी नई चीजे भी मुल्यवान होती है-सार्थक होती है।
हर व्यक्ती का अपना महत्व है।  व्यक्ती अपने गुण से, अपने व्यक्तित्व से, अपने चरित्र व्यवहार से जाना जाता है, यह सभी बाते ही आदमी को ऊँचा बनाती है, ना कि आप फंला  क्षैत्र के जुने-पुराने लिखाडे हो।

इस धुआधार अंधेरो  से गुजरने के लिए
सूने दिल से कोई मशाल तो जलानी होगी।

हिंदी ब्लोगिंग  को दोहरेपन के शिकंजो से आजाद करना पडेगा।  यह लडाई किसलिऐ ? कोनसी विरासत हाथ लगने की आश है हमे क्या हम मिलजुलकर, भाईचारे से, एक दुसरे की मान-मर्यादाओ एवम स्वाभिमान का ख्याल रखते हुऍ ब्लोगिंग  नही कर सकते ? अपेक्षा मात्र इतनी है, की हम सभी इमानदारी से हिंदी चिठठाकारी के चहुमुखी विकास पर ध्यान केन्द्रित करे।
समय-समय पर नऐ ब्लोगरो को भी प्रोत्साहीत करे। अपनी चर्चाओ मे उन्हे सम्मिलित करके, उन्हे मार्गदर्शन दे।  झगडा कब उत्पन होता है, जब हम किसी की बार बार उपेक्षा करे। अपनी दुकान की मिठाई, रिस्तेदारो मे मिलबांटकर  खाने से पडोसी खुश नही होता, उसके मुंह  मे भी मिठास पहुचे अपेक्षा बनी रहती है।
सच पहले भी वो ही था जो आज है और कल रहेगा। जो लोग लकीर खीचकर उसे आखिरी रास्ता मान बैठते है उन्हे बैकवर्ड होने से, पिछडने से कोई रोक नही सकता। मेरी निगाह मे चिठठाकारी जीवन मे मर्यादा निहायत जरुरी है। यह तो वैसे ही है कि आप तरक्कियो के रास्तो को अपने हाथो से बनाते है, उन्हे बुलन्दियो पर शुमार करने के लिए अगली पीढी के हाथो सुपुर्द कर देते है। यही उत्तम तरिका है  ओर मंगलमय भी .
आज हमे गर्व होना चाहिऐ की समीरलालजी, ज्ञानदत्तजी, रामपुरीयाजी, शास्त्रीजी, अरविन्द मिश्राजी, राज भाटिय़ा. जैसे वरिष्ट् लोगो का साथ मिल रहा है तो आशिषजी खन्डेलवाल, शिवकुमारजी, सन्जयजी बैगानी,    रतनसिहजी, जैसे युवा प्रतिभावानो का मार्ग दर्शन भी मिल रहा है।
इस इरादे के साथ..........................

तू चल रे नजीर
इस तरह से कारवॉ के साथ
जब तू न चल सके तो तेरी दास्ता चले।

आप मेरी भावनाओं में छुपे दर्द को को समझे. कोई व्यक्ति विशेष के लिए यह बाते नहीं कही गई है. मात्र  ब्लोगिग एवम हिंदी ब्लोगरो में एक दूसरो के प्रति आदर भाव, प्रेम भाव, की चाहत लिए यह पोस्ट को लिखा गया है. मेरी गुजारिश है सभी छ: हजार हिंदी चिठाकारो से  की वो मेरे विचारों की मूल हार्द को जाने पहचाने व सभी दो शब्द टिपण्णी के माध्यम से शपथ ले......................
* आज से हम सभी हिंदी चिठठाकार एक दूसरो को मान-सम्मान देंगे,ओर लेंगे.
* अपने ब्लोगिंग जीवन के व्यवहार में स्वस्थ प्रतिशपर्धा को अपनाएगे.
* विषय से हटकर किसी साथी ब्लोगर के खिलाफ़ ना लिखेगे, ना ही उसका समर्थन करेगे.
* वरिष्ठ ब्लोगर,छोटो को प्यार देगे....छोटे, मान-सम्मान देकर वरिष्ठ ब्लोगरो का आशीष एवम स्नेह पाने का लक्ष्य बनाए

भूर्ण-हत्या- कैसे बना दानव - मानव ?

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प्लिज मम्मा, मुझे मत मारो, मुझे भी भैया के साथ खेलना है।

भारत की संस्कृति विश्व की सर्वोच संस्कृति है. संस्कृति हमारी धरोहर है, विरासत है, अंहिसा की प्रतिध्वनी में फलने वाली इस देश की धरती पर आज चारो तरफ हिंसा का नाद है. कहते है यह इक्कस्वी सदी महिलाओं की है. प्रश्न उठाता है फैशन , नशा, भ्रूण हत्या, अनुशासनहीनता जीवन, अनावश्यक संग्रह की मनोवृति जैसी प्रवृतियो में तेजी से बढ़ती हुई महिलाये क्या अपनी  संस्कृति  का सम्यक निर्वाह कर रही है ?  भ्रूण-हत्या  इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी है.

उड़न तश्तरी .... समीर लालजी ने दो दिन पहले  एक पोस्ट लिखी थी , उसमे समीरजी ने लिखते हुए कहा - "शायद कहीं आपको छुए/ झकझोरे". पूरा का पूरा मनडा ही  खर-खर हिल गया . कविता के माध्यम से समीर जी ने भ्रूण हत्या पर जो त्रासदी बया की  आँसूओं की धार मेरी आँखों से भी निकल पडी और गंगा में समाहित हो गई. आप भी देखे समीरजी ने व्यथित  मन से जो भाव प्रकट  किये  और शब्दों के माध्यम से कन्याओ की भ्रूण हत्या पर समाज को जो फटकार लगाईं  वो प्रंसनीय तो है ही वर्तमान में इस ओर  कठोर रूप से अजन्मे बालको की हत्याओके विरोद्ध में जनचेतना के लिए बेहद मार्मिक और सशक्त अभिव्यक्ति अग्रषित की  है. 
बुजुर्ग बताते थे कि सपनों का आधार आपके दिमाग के कोने में पड़े वो विचार होते हैं जिन्हें आप पूरा होता देखना चाहते हैं किन्तु जागृत अवस्था में कुछ कर नहीं पाते. कह नहीं पाते और मूक दर्शक बने उन्हें अपने आसपास होता देखते रहते हैं. ऐसे विचार सपनों में आकर आपको झकझोरते हैं, जगाते हैं.
एक कविता, बिना किसी भूमिका के, प्रस्तुत करना चाह रहा था, इत्मिनान से पढ़ें और शायद कहीं आपको छुए/ झकझोरे, तो दाद दिजियेगा.
गंगा,
जो शंकर  की जटाओं से
नहीं निकली..
वो है
एक उस  क्न्या के 
आँसूओं की धार
जो जन्मीं ही नहीं..
सांस लेने के पहले
उसे मार दिया गया..
भ्रूण में ही..
शायद इसीलिये
गंगा के होते हुए भी
वो धरती
मरुस्थल है...........

पराया देश,  पर राज भाटिया जी ने भी भ्रूण हत्या जैसे  कृत्य  को कंस की संज्ञा दी . उन्होंने समाज से  अपने दर्द भरे दिल से  की प्रश्रन लिख छोड है, जो विचार करने योग्य है. बडे ही दुखी  मन से पर गुस्से  से समाज में भ्रूण हत्या जैसे जधन्य  अपराध  पर लिख मुझे यह पोस्ट लिखने  को प्रेरित  किया है.  आप सभी देखे राज भाटियाजी ने  समाज में भ्रूण हत्या को लेकर मानव कैसे बना  दानव  ? उन्होंने इसे एक  आन्दोलन के रूप में लिखा  है जो एक मानव एवं स्रष्टि  के हित की बात है.
जो मां बाप कोख मै ही बेटी को मारे, उसे आप क्या कहेगे ? जो ड्रा पेट मे किसी बच्ची को जन्म से पहले ही मार दे उसे आप क्या कहेगे ?
अजन्मे को मोत के मुंह मे धकेलना क्या अच्छा है, अगर वो बच्ची है तो क्या वो कलंक है ? अरे जिस के पेट मै है वो भी तो कभी बच्ची थी.... जो परिवार ऎसा करे उस परिवार से नाता तोड ले.... रहने दे उन्हे अकेला... उन के लडके को कोई बहू मत दो... आओ मिल कर इन गंदे कृत को रोके.... आओ मिल कर हम इस कंस को मारे..

भ्रूण हत्या यह मानव समाज में  ऐसा  कोढ है जो संक्रमण की तरह फ़ैलता जा रहा है, जो सभी समाज के भाल पर कलंक टीका है. आज एबोर्सन एक फैशन  बन गया है. जो माँ ममता की मूर्त होती है अपनी ममता के विस्तरत आंचल में बच्चे को दुलारने-सहलाने वाली माँ ऐसा जधन्य अपराध कर सकती है. कल्पना से परे की बात है. जिसके उर में बेपनाह ममत्व हिलोरे लेता है, कैसे  वह उस संतति की निर्मम ता से ह्त्या करवाकर "माँ"  कहलाना कितनी विडम्बना है.  इसमे पुरुष में बच  नहीं सकता क्यों की इस अपराध में वो भी बराबर का हिस्सेदार है.
आज हम सबको मिल बैठकर चिन्तन विचार विमर्श करना है की प्रक्रति ने सहज स्वाभाविक रूप में माँ की ममता के आंचल की ओर अग्रसर किया , उस पर तुषारापात ओर कुठाराधात क्यों ?
लोगो मुझे  "टाइगर" कहते है . आप मनुष्य मुझे जानवर की श्रेणी में गिनते है. पर हमारे जानवरों में अपने अजन्मे बच्चो को मारने की कोई रिवाज नहीं है. फिर यह सवाल आप के लिए जानवर कोन हुआ ? 
आप या हम  ?


आज हिंदी दिवस है कोई तरह से मै दकियानूसी वाली बात नहीं करुगा-मुंबई टाइगर

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आज हिंदी दिवस है कोई तरह से मै दकियानूसी वाली बात नहीं करुगा आज के हिंदी बर्थ डे कों बड़ी ही प्रसंता से मना रहा हू . आज मै ने यह निश्चय किया की कोई भी हाल में हिंदी भाषा कों बढावा मिले, सहजता से लोग 
अपनाए , अपनी प्रिय भाषा बनाए, इस और मेरे जंगल राज में प्रयास करुगा. हिंदी मेरी माँ  है  मै उसके लिए कुछ भी कर गुजरुगा......
मै हिदी ब्लोग जगत कों बधाई देना चाहाता हू की विगत वर्षो से हिंदी भाषा कों सरल, सुगम बनाया जिससे सैकडो लोगो ने अपनाया आप सभी इसी तरह इसे बढावा देते रहे. 

मै प्रससा करना चाहता हू हिंदी टेलीविजन मीडिया की जिसने हिंदी बोलने वालो कों शर्म से निजात दिलाई. अब लोग हवाई जहाज , ए. सी. रेलवे कोच, फाई स्टार सेवन स्टार होटलों में वेटर से लेकर ग्राहक तक बिना शर्म के हिंदी में बोलते हुए देखे गए. मै धन्यवाद देना चाहता हू अमिताब बच्चन  कों की उन्होंने "कोन बनेगा करोड़पति" कार्यक्रम से लोगो कों हिंदी में बोलने  पर गर्व करना सिखाया . 

आज हम कुछ कमियों का रोना नहीं रोये तो  अच्छा है, बस एक ही आवाज हो हिंदी है हम हिन्दुस्थान हमारा .

आप को भी हिदी दिवस पर हार्दीक शुभकामनाऍ।आपका मुंबई टाइगर 

राखी का राम मन का मोहन स्वयवर से भागा: दुल्हे ने कहा ना बाबा ना

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राम कि तलास मे सीता बनी राखी

वहा भाई वहा! कुछ दिनो से चर्चा मे रहा कलयुगी "स्वयवर" के एक दुल्हे ने राखी सावन्त को ना बोलकर रिजेक्ट कर दिया। प्रोग्राम के फोरमेट के अनुसार केवल राखी को ही वो अधिकार थे की किसी भी बनावटी "देवदास दुल्हे" को रद्दी की टोकरी मे फैक सकती है। किन्तु यहॉ उसके ठीक उल्टा  
"छोरा गगा किनारे वाला" पावन धाम "ऋषिकेश" के मनमोहऩ तिवारी ने तो आव देखा ना ताव दो दिन पुर्व ऋषिकेश कि हॉटल मे जहॉ राखी सावन्त ठहरी हुई थी रात मे जाकर राखी को "रिजेक्टवा" कर दिया, यानी शादी ना करने की बात कर राखी को  "जोर का झटका धिरे" से दे दिया। राखी हतप्रत थी कलयुगी राम बनेने चले मनमोहन के वकीलिया बुद्धि को लेकर। मनमोहन ने राखी को जहॉ ना बोला वहा स्वयवर आयोजित करने वालो की भुल हो गई की होटल मे कैमरे नही थे। बस वही मनमोहन ने वकीलिया बुद्धि यूज कर डाली और ऑफ द रिकार्ड राखी से बात कर आया। राखी ने बाद मे ऑन रिकार्ड टीवी मे मनमोहन को भलाबुरा कहा। राखी ने कहा-" मनमोहन मेरे ड्रायवर और सैक्रेटी से गया गुजरा है, राखी ने आगे कहा-" मुम्बई की सडको पर हजारो मनमोहन घुमते है।" कहने का अर्थ "खिचीयानी बिल्ली खम्बा नोचे।"
 इससे यह बात तो साफ हो जाती है शादी जैसे पवित्र बन्धन का कलयुग मे बाजारीकरण नही किया जा सकता। आजके युग मे जिस राम कि तलास मे सीता बनी राखी जिस रास्ते निकली पडी थी, उसी स्वयवर के सभी  उम्मेदवार प्रसिद्धि, नाम, गैलमर के चक्कर मे भारतीय सस्कृति का बन्टाधार करने को तुले थे। इसका अन्त क्या होगा यह तो पत्ता नही, पर क्या राखी ने चैनल से मिलनेवाले कुछ धन-बल के चक्कर मे,  
स्त्री धन {मर्यादओ- सस्कारो-और भारतीय सस्कारो-परिवारिक सामाजिक मर्यादाओ} को अरक्षित/ असुरक्षित नही किया ?

क्या प्यार ब्याह इतना बाजारु हो गया की खुल्ल्म खुल्ला सडको पर किया जाऍ ?  
राखी पुछती है -" मै आईटम गर्ल हू यह बात शादी मे रोडा तो नही बनगी ?"
अरे राखी जी !  आप "आईटम गर्ल" है तो यह लडके कोन से दुध के धुले हुऍ है सभी तो आईटम-बॉय है।
हम तो भगवान से दुआ ही करेगे की राखी इस स्वयवर मे एक पति को जीते व जीवन भर यह रिस्ता मजबूत रहे।

 सभी के लिए जितनी जिम्मेदार राखी है,  उतने ही उसके उम्मीदवार डायरेक्टर, निर्माता, स्टोरी लेखक, चैनल भी है। अब शो देखने वालो के लिए क्या कहू ? क्यो कि मै भी तो  देख रहा हू।
"पैसा फैक तमाशा देख," भाई! पब्लिक है यह सब जानती है।

हिन्दी का कच्चा चिट्ठा: नवभारत टाइम्स के पन्नो मे। ताऊ उड़नतश्तरी, मानसिक हलचल, व्योम के पार, शिवकुमार मिश्र के बिना कोई लेख हिन्दि चिट्ठा जगत के लिऐ पुर्ण नही ।

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ताऊ ,
उड़नतश्तरी, 
मानसिक हलचल, 
व्योम के पार, 
शिवकुमार मिश्र, 
डॉ, अमरकुमारजी, 
के बिना  कोई लेख हिन्दि चिट्ठा जगत के लिऐ पुर्ण नही ।
नवभारत टाईम्स मुम्बई आज 59 वी वर्ष गाठ मना रहा है 'हिन्दी है हम' विशेषाक मे हिन्दी जगत कि वो तमाम बाते आज चर्चा का विषय बनी। हिन्दी  चिट्ठा जगत ने आज खास स्थान पाया नवभारत के ईन्ही पन्नो मे। हमारी सहयोगी कचन श्री वास्तव ने हिन्दी  चिट्ठा जगत कि तमाम वो सख्सतियो पर चर्चा की जो ब्लोग मे आने के बाद चमक उठे है।  
भडास,मोहल्ल,नुक्ताचीनी, चोखेर बाली,पोलखोली, चव्वनीछाप,धर्म ससद,बाल सजग, सारथी,हिन्दी ब्लोग टीप्स, फुरसतियाजी इत्यादि कि चर्चा की  तो साथ ही साथ भडास के यशवन्त की हिन्दी  चिट्ठा जगत से एक लाख की कमाई का भी उल्लेख किया।  आलेख मे बताया गया है बीते 2 सालो मे 25000 हजार हिन्दी ब्लोग नेट पर आगऐ। यह बात कुछ हजम नही हुई। चुकि हिन्दी बोलने लिखने वालो कि सख्या दुनिया भर मे 68 करोड हो गई है ,वेसे मे 25000 हजार हिन्दी ब्लोग तो जन्म ले ही लेने चाहिऐ।
कचनश्री वास्तव ने शायद कोई खास जानकारी लेकर उपरोक्त आलेख नही लिखा ऐसा मुझे लगा। नही तो
ताऊ डॉट इन, उड़नतश्तरी ...., मानसिक हलचलशिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग
Vyom ke Paar....व्योम के पार....पंगेबाज,   कवि योगेन्द्र मौदगिल ,  कुश की कलम ,   घुघूतीबासूती ,  तीसरा खंबा ,  पराया देश,  और मेरा नाम भी जोड दु तो कोई नारजगी नही होनी चाहीऐ, हे प्रभु यह तेरा-पथ;  के नामो का उल्लेख किये बिना हिन्दि चिट्ठा जगत कि बात आपुर्णिय है। पर शायद स्पेज कम पड गया होगा ? फिर भी उनकी यह कोशिस रन्ग लाई, क्यो कि
सारथी एवम फुरसतियाजी एवम हिन्दी ब्लोग टीप्स को याद रखा।

नवभारत पर प्रकाशित लेख को देखे। बहुत ही सुन्दर लिखा है- कचनजी ने, जो बधाई की पात्र है। आप यहॉ उन्हे बधाई शुभकामना दे जो उन तक पहुचाई जा सके।

तैनसिग और हैलेरी को जरुर बहुत गर्मी लगी होगी। इसिलिऐ एवरेस्ट कि चोटी चढ गऐ होगे।

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भारत एक ऋतु प्रधान देश है।यहॉ तीन ऋतुऐ होती है। सर्दी, गर्मी और वर्षा। ठिक उसी तरह, जिस तरह यहॉ तीन प्रकार के लोग होते है। अमिर गरिब एवम मध्यम वर्गीय। गर्मियो मे अमिरो को खुब गर्मी लगती है, तो ये ठण्डे प्रदेशो मे चले जाते है। लेकिन मैने आज तक किसी अमिर को सर्दियो मे गर्म प्रदेश जाते हुऐ नही सुना। ठण्डी का मजा लेने ये पहाडो पर जाते है। मुझे लगता है तैनसिग और हैलेरी को जरुर बहुत गर्मी लगी होगी। इसिलिऐ एवरेस्ट कि चोटी चढ गऐ होगे। गर्मी पता नही इन्शान को कहॉ-कहॉ चढा देती है।
 
र्मीयो मे हिलस्टेशन का आनन्द कुछ और ही होता है। और उसमे सबसे बडा मजा होता "स्वतन्त्रता"।मोटी-मोटी पत्नियो को भी हिल स्टेशन पर सलवार सुट,जिन्स एवम बरमुड  और ना जाने क्या-क्या पहना कर पति घुमते है। यह देखकर यू लगता है जैसे कोई बुझी हुई राख मे शोले ढूढ रहा हो। खुद पति भी एक अदधा (शराब) खरीदकर मधपान करते है। पत्निया हिलस्टेशन पर मधपान कि मनाई नही करती है। इसबिच पत्निया भी आमलेट खाने एवम चुसकियो लेने कि असफल कोशिश करते देखा गया। हिलस्टेशन पर पहली बार यह महसुस होता है कि -यह ही जिन्दगी है। शहरो मे तो कोल्हु के बैले की तरह हॉलत होती है।
कभी-कभी हालत उस समय खराब होती है जब हिल स्टेशन पर रुम फुल होते है। उस समय वहॉ के ड्राईवरलोगो को महसुस होता होगा कि वे यात्रियो के लिऐ सकटमोचक हनुमान है। जब ड्राइवर अन्दर कमरे की पुछताछ करने जाते है तो टैक्सी मे बेठे हम इस तरह इन्तजार करते है, 'जैसे कोई बाप अपने विलायत से लोट रहे डाक्टर बेटे का।' पर जब खबर मिलती है, वह वहॉ से डाक्टरी भी करके नही आया लेकिन वहॉ से कोई मेमे को ले आया है। वही हॉलात इनकी होती है। जब ड्राईवर मुह लटकाकर आता है। जब तक कही जगह नही मिलती वहॉ तक सबकी हलात सरकस के पिजरो मे पकडे गऐ जानवरो की तरह होती है, जिन्हे एक जगह से दूसरी जगह पकडकर ले जाया जा रहा हो। जब कही छोटे मोटे कमरे का बन्दोवस्त हो जाता है, तो पहली बार ड्राईवर भी इन्शान दिखाई देने लगता है।
 
जिस तरह लोग फोटुजनिक होते है और कई लोग नही, ठीक उसी तरह हिलस्टेशन का खाना भी बडा फोटुजनिक होता है। वहा पर इटली,वडा,साम्बर फोटु मे ही इटली,वडा,साम्भर दिखते है। पर जैसे ही उन्हे मुह मे रखते है तो 'जिन्दगी कटु सत्य है', उसका आभास होता है।

र पत्नि की फरमाईशो मे एक और बडोतरी होती है। हमे भी किसी हिल स्टेशन पर अपना एक छोटा सा मकान बनाना चाहिऐ, पति को पहली बार पत्नि की यह फरमाईश कानो को मजा देती है। पर वह भी वापसी की ट्रेन मे बैठने के पुर्व उसे हिलस्टेशन पर ही छोड आता है। पत्नि को दो चार बार रंमी मे हराने के बाद पति को अपने पर तुरन्त ही 'ग्रेट गेम्बलर' होने का अभास होने लगता है। पहली बार पत्नि पति को पर-स्त्री से बात करने देती है,और जलती नही है। क्यो कि आखिर दोनो कितनी बाते करते रहेगे ? तो वे पास के रुम वाले से पहचान बनाते है। फिर रस ले लेकर दोनो जोडे खुब बाते करते है। बेचारे पतियो के लिये यह सब बाते बाद मे मधुर स्मृतिया बनकर रह जाती है। गोगल्स एवम टोपिया पहनकर खुब फोटु खिचवाते है। पर दोनो अपना फोटु साथ खिचवाने के लिऐ भले पुरुष को ढुढते है। जो सिर्फ तिन चार फोटु खीचे पर लेकिन लन्च के वक्त कुर्सी खसकाकर डाइनिग टेबल पर साथ नही बैठ जाऐ। घनिष्टता बढाने कि कोशिस ना करे। मैने यहॉ देखा है - फोटु खीचवाना हो तो हमेशा लोग पुरुषो से रिक्वेशट करते है, स्त्रियो से नही, जैसे हमे कभी माचीस की जरुरत होती है तो हम हमेशा किसी पुरुष से पुछते है,किसी स्त्री से नही। 












 शादि के फेरो के बाद हिल स्टेशन पर ही पति-पत्नि का फिर एक बार हाथ पकडने का सुअवसर प्राप्त करता है। एक सख्त टिचर हिल स्टेशन पर आकर एक साधारणा एवम रोमाटिक महिला बन जाती है। बच्चो को खुब खेलने देती है, लेट उठने, नाहने पर वह गुस्से कि बजाऐ खुश होती है,ठिक उसी तरह जिस तरह पडोसी का बच्चे का परिक्षा मे फैल होने का समाचार सुनने पर। पति को बडी ही परेशानी होती है जब उअसे अखबार न मिलने नित्यक्रम मे बाधा पडती है। उअस पर पति पेट पकडकर यह जरुर कहता है रात के खाने मे कुछ गडबड आया दिखता है, जबकि सबने वही खाया होता है,  
पकोडीवालो-चाटवालो को पति बदनाम करता है। 

हली बार चारो तरफ सुख-शान्ति दिखाई देती है। सबके चहरो पर प्रसन्नता दिखाई देती है। ठीक रामराज्य कि तरह। मुझे तो लगता है, अयोध्या जरुर किसी हिलस्टेशन पर ही रहा होगा। यात्रा की वापसी मे, वही पत्नि जो हिल स्टेशन पर मेनका (प्रेमिका/अप्सरा) बन गई थी। अब वापस पत्नि दिखाई देने लगी है। बच्चो का चुलबूलापन अब 'बेवकुफी' दिखाई पडती है। सच तो यह है ट्रेन भी जबरदस्ती शादी होने वाली डोली की तरह दिखाई देती है। पर क्या करे अखिर कर्म भुमि मे तो जाना ही होगा। कर्म करने। भले वह सुकर्म हो या कुकर्म।

प्रवीणजी त्रिवेदी के इस प्रयास को सफल बनाने मे अपना योगदान यह फार्म भरकर जरुर दे।

7 comments
श्री प्रवीणजी त्रिवेदी  
पका सर्वे हिन्दि ब्लोग जगत के  आर्थिक सामाजिक एवम परिवारिक आकाडो को सुचारु रुप से एकत्र करने मे कामयाब होगा। मेने हमेसा ही इस बात पर हमेशा बल दिया है जब तक हमारा आर्थिक पक्ष मजबुत नही होगा तब तक हिन्दी ब्लोग जगत के विकास मे धिमापन रहेगा। हमे इस और भी ध्यान देना चाहिऐ कि एक राष्ट्र स्तर पर हमारी तकनिकि टीम या कार्यबल हो जो इस तरह के व्यवाहारिक मुद्दो पर चिठठाकारो को मदद पहुचाऐ। हमे गुगल सहीत लोकल विज्ञापन ऐजेन्सीयो को इस ओर प्रोत्साहीत करना चाहीऐ। यह काम व्यक्तीगत स्तर कि बजाय सगठीत होकर करने मे हमे आधिक फायदे मिलेगे। इसमे हमे सरकारी एवम गैर सरकारी एजेसियो से मदद कि भी उम्मिद है. पर कोई ठोस कार्यबल एवम रुपरेखा कि जरुरत है। शायद आपके सर्वेक्षण से हम उस लक्ष्य के कुछ हिस्से तक पहुच पाने मे सफल होगे। मै बडा ही प्रसन्न हू कि आपने अपना कुछ सहयोग के रुप मे पहल कि । मै सभी  ६००० हिन्दी चिठाकारो से अपिल करता हू कि  प्रवीणजी त्रिवेदी   के इस प्रयास को सफल बनाने मे अपना योगदान यह फार्म भरकर जरुर दे। एवम इस मुद्दे पर अपनी स्पष्ट रॉय व्यक्त करे। जिससे  कुछ हिन्दी चिठाकारो के आर्थिक सामाजिक विकास के दरवाजे खुले। मेरी हार्दिक शुभकामनाऐ  प्रवीणजी त्रिवेदी को......एवम 


मुम्बई टाईगर, एवम हे प्रभु यह तेरापन्थ हमेशा ही इस तरह के कार्यो मे हाथ बटॉने को तेयार है।
प्रवीणजी की अपील

हिन्दी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण - शामिल होने का आमंत्रण

प्रिय ब्लॉगर बन्धु !!
सादर नमस्कार और अभिवादन स्वीकार  करें

पिछले दिनों हिन्दी चिट्ठाकारों के रूप में मन में उनकी आर्थिक हैसियत का आंकलन करने की तमन्ना थी .
मन में भाव यह था कि देखा जाए कि किस आर्थिक परिधि से जुड़े हुए लोग हिंदी ब्लॉग्गिंग का हिस्सा बन रहे हैं .
जाहिर है कि यदि हम ब्लॉग्गिंग को अधिकतम जान मानस तक पहुँचाने के आकांक्षी हैं तो यह सर्वेक्षण महत्वपूर्ण परिणाम दे  सकता है .
तो आइये एक पर्व के रूप में शामिल हो इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों का इन्तजार करें
जाहिर है यह कहने कि आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि यह सर्वेक्षण एक रुझान जानने का ही एक मात्र प्रयास है .......इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं?
एक निवेदन और कि इस  सर्वेक्षण का प्रत्येक स्तर से प्रचार करके इसमें अधिकतम लोगों की भागीदारी ही
सच्चे परिणामो को सुनिश्चित कर सकती है . चलते चलते एक निवेदन और कि लक्ष्य ज्यादा बडे डाटाबेस का है अतः इसे प्राइमरी के मास्टर से बड़े  परिदृश्य की आवश्यकता है 
सर्वेक्षण को अपने वेब-पेज में दिखाने का link है 
सर्वेक्षण का इ-मेल link है

भारतीय होने की निष्ठा

2 comments
" मुझे यह यह अच्छा नही लगता , जब कुछ लोग कहते है की हम पहले भारतीय है और बाद में हिंदू अथवा मुसलमान या जैन,अथवा सिख , ईसाई है मुजे यह स्वीकार नही हैधर्म , संस्क्रती, भाषा तथा राज्य के प्रति निष्ठा से ऊपर है भारतीय होने की निष्ठामेरा एसा मानना है की लोग पहले भी भारतीय हो अंत तक भारतीय रहे -भारतीय के अलावा कुछ नही ." -हे प्रभू तेरा-पथ