एसेंशियल टिचिग्स ऑफ़ हिन्दुइज्म
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नारी
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मनुस्मृति मे कहा गया कि स्त्री की जीवन भर रक्षा करनी चाहिऍ। इसे, स्त्रियो की स्वतन्त्रता का विरोधि और उन्हे गुलाम मानने की भ्रान्ति पैदा हो गई। है। इस भ्रान्ति का विरोध करते हुऍ अग्रेजी की महिला ग्रन्थाकार केरी ब्राउन ने अपने"एसेंशियल टिचिग्स ऑफ़ हिन्दुइज्म नामक'" प्रख्यात पुस्तक के पृष्ट १८६ के मनु के श्लोक का वास्तविक अर्थ समझाया है.
"हिन्दू समाज ने स्त्री को हीन या असमर्थ कभी नहीं माना है. उसे हमेशा समाज के सम्मान ओर शक्ति का प्रतिक माना है. जिस प्रकार किसी मूल्यवान मुकुट को रक्षा के बिना नहीं रखा जाता है, वैसे ही स्त्री को सरक्षण के बिना नहीं छोड़ा जा सकता है. यही मनुस्मृति के श्लोक का अर्थ है. स्त्रियों पर परिवार के लिए जीविकोपार्जन का अतिरिक्त भार नहीं डाला जाना चाहिए क्यों की वह समाज की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करती है. वह शिशु के जनन ओर रक्षण , परिवार के योगक्षेम ओर अध्यात्मिक विकास की ओर बच्चो को संस्कारित करने की जिम्मेदारी का निर्वाह करती है. "
भारतीय सस्कृति में नारी को दैवी गुणों से संपन्न माना गया है. और उसे अतियंत सम्मान का दर्जा दिया गया है . अपनी माँ में परमात्मा का दर्शन (मातृ देवो भव) मानने के साथ अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों को माँ जैसा मानने जैसा जीवन मूल्य हमारी भारतीय सस्कृति की विशेषता है.
पत्नी आजीवन सखी है. तथा वह माँ के संमान ही सम्माननीय है. क्यों की वह उसके बच्चे की माँ है. यह स्त्री को दिया हुआ अत्यंत महत्त्व का स्थान है. हर लड़की /स्त्री मातृत्व का अवतार है . यह विचार पुरुषो के कामुक प्रवर्ती को सयम में रखता है. यह स्त्री मूल्यों का रक्षा कवच है. जो उसे अत्याचारों से बचाता है. यह स्त्री को पुरुष की भोग्या मानने वाली पाश्चात्य सभ्यता की प्रवृति का विरोधी है. हमें ऐसी पाश्विक वृति को त्याग कर भारत के शाश्वत ओर दैवी मूल्यों को बचाना है. यह मानव के अत्याधिक पवित्र ओर सनातन मूल्य है.
कुछ घटनाओं को अपवाद समझना ही अपेक्षित है.