ताऊ किसी दूसरे पर तोहमत नही लगाता-अपनी खिल्ली उडाकर ही हास्य के रुप मे व्यंग करता है-रामपुरिया जी
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ताऊ
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नाम रुपात्मक दृश्य जगत मे प्रत्येक पदार्थ अपना यथार्थ नाम या शब्द खोजता है और उसकी स्थापन करता है। शब्द व्यक्ति या वस्तु को पहचान देता है तो अर्थ प्रतिष्ठा देता है। शब्द ,अर्थ, और व्यक्ति तीनो समरुपता कठीन अवश्य है, असम्भव नही। इस प्रतिष्ठित अर्थ के जगत मे एक ऐसा अर्थ जिसके अस्तित्व, कतृत्व एवम व्यक्तित्व को उजागर करता है। एक शब्द "ताऊ"। हॉ ताऊ ऐसा व्यक्तित्व है, जिसके नाम और अर्थ मे कोई दुरी नही । प्रश्न है ताऊ कोन ? ताऊ वह जिसकी अन्तदृष्टि जागृत हो, जिसकी सोच साकारात्मक हो, जिसका दृष्टिकोण विधायक हो, जिसका जीवन सहता, सरलता का समन्वित रुप हो, जिसका अशन और आसन नियन्त्रित हो।जिसने लोगो के दिलो पर विजय प्राप्त कर ली हो, जिसकी लिखाई नियन्त्रित एवम सधी हुई हो एवम भाषा लोक=लुभावनी हो। |
ताऊ वस्तुतः ताऊ है क्यो कि उनका अस्तित्व इन सारे रहस्यो का समवाय है। ताऊ एक विचार धारा है, पर उनके रुप अनेक है कभी वे विचारो को यूगीन भाषा मे प्रतुति देते नजर आते है, कभी वे मग्गा बाबा के रुप मे भाष्यकार बनकर उभरते है, कभी उन मे से हरियाणवी भाषा मुखरित होती है, तो कभी वे हिन्दी भाषा के वाग्मी सन्त बन जाते है। कभी एक अर्थशाश्त्री के बतौर नजर आते हैं। कभी ताऊ अपनी मेड-इन-जर्मन लठ की हुल्ल पट्टी देते हुऍ दिखाई देते है, कभी नटवरलाल तो कभी चाणक्य रुप, कभी महात्मा बाबा तो कभी लुटायत, बाप रे बाप ताऊ है या फैन्टम, स्पाईडर मैन है या चाचा चोधरी। हिन्दी चिठ्ठा जगत मे ताऊ कोई परिचय का मोहताज नही। ताऊ, ने सबसे पहली पोस्ट May 22, 2008 को लिखी, तब से १६ महिनो के अपने ब्लोगिग सफर मे ४१९ पोस्टो मे १५ हजार कमेन्ट के साथ हजारो पाठको के दिल मे जगह बनाने मे कामियाब हुऍ। ताऊ की इस सफलता के पिछे सिर्फ एक ही एक कारण स्पष्ट दिखलाई पडता है- वो है- ताऊ के चरित्र को जी रहे श्री पी.सी.रामपुरियाजी (मुदगल) का अथक परिश्रम, चिठ्ठाकारिता के प्रति लगन, एवम समय के पाबंद। "ताऊ डाट इन" ने हिन्दी चिठठाकारी को एक नई पहचान दी। ताऊ डाट ईन से प्रोत्साहीत होकर सैकडो लोग हिन्दी चिठठाकारी की और आकर्षित हुऍ। बहुत से चिठ्ठो पर तो ताऊ के विभिन्न "किस्से-कहानियो" की श्रृखलाए शुरु हो गई। "अरे बावलीबूच".. ताऊ का तकिया कलाम डायलॉग तो जन-जन के मुह पर है। |
ताऊजी की प्रसिद्धि के अनेक कारणो मे एक मुख्य कारण यह भी है- इनका मोलिक लेखन एवम बोलचाल की भाषा। लेखन शैली इतनी पैनी है की पाठको को एक बार मे ही आकर्षित कर लेती है, पाठक को लगता है कि वो स्वय उस पात्र को जी रहा है। लोग पढकर अपनी जीवन की धारा को मोड लेते है। जब ताऊ लिखता है तो लगता है कोई अपने आसपास होने वाली घटनाक्रम को देख रहा है, उसे महसुस किया जा सकता है। एक ताऊ बडा ही मनोविज्ञानिक मानव मन की समस्याओ की गुत्थि को बडे ही विनोदी स्वभाव से सुलझा रहा है। सचमुच ताऊ जैसा चरित्र शताब्दियो मे कोई एक ही होता है। ताऊ के कर्तृत्व की आभा हिन्दी चिठ्ठाकारी को उजाला देती है। ताऊ डॉट ईन के संस्थापक श्री रामपुरीयाजी (ताऊ) ने अपने लेखन कर्तृत्व से जो रोशनी बिखेरी,वह आज सैकडो हिन्दी पाठको, लेखको, के पथ को आलोकित कर रही है। २२ मई २००८ को ताऊ डाट इन की शुरुआत करने वाले ताऊजी ने हिन्दी ब्लोगिग मे नये उच्छवास भरे, हिन्दी चिठाकारी नई ऊचाईयो को छूने मे सक्षम हो गया। यशस्वी हिन्दी चिठठा जगत ने रामपुरिया जी को "ताऊ" नाम का सम्मान देकर नवाजा। ब्लोगिग ससार ताऊ ने १६ महिना २५ दिन ४२१ पोस्ट व १५८०० टिपणियो के माध्यम से अल्पअवधि मे जो ख्याती प्राप्त की यह भी एक हिन्दी ब्लोगिग के इतिहास की विरल घटना है ताऊ पात्र इतिहास का दुर्लभ दस्तावेज बनेगा इसमे हमे कोई शको-शुब्बा नही होनी चाहिये। ताऊ के बारे मे लिखने बैठे तो शायद इस ब्लोग के पन्ने कम पड जाऍ। |
ताऊ की भुमिका का बेखुबी से निर्वाह कर रहे आदरणीय श्री पी.सी.रामपुरिया जी (मुदगल) जो किसी परिचय के मोहताज नही हैं, आप सभी उनको एक शीर्ष ब्लागर के रूप मे पहचानते हैं। रामपुरिया जी ने हमको एक छोटी सी बातचीत का समय दिया। आपको भी उस बातचीत से रुबरू करवाते हैं। |
ताऊ से बातचीत करते हुऐ महावीर बी सेमलानी
सवाल-1; आप कब से ब्लागिंग मे हैं? आपके अनुभव बताईये? आपका ब्लागिंग मे आना कैसे हुआ?उत्तर; सार्वजनिक ब्लागिंग मे १५ / १६ महिने पहिले से. इससे पहले निजी ब्लागिंग (अपने ग्रुप) में सीमित थे.
अनुभव : बहुत ही अच्छे रहे हैं, बस कुछ परदुख: भंजनकारों की कारस्तानी छोड दी जाये तो. और आटे मे दाल
जितना तो होना जरुरी भी है.:)
सवाल-2; ब्लोग का नाम "ताऊ" रखने के पिछे आपकी मुल अवधारणा क्या रही ?
उत्तर; - मूल धारणा तो कोई विशेष नही थी...असल मे मैं जिस कंपनी से संबंध रखता हूं वहां के लडके/लडकियां मेरे बोलने के अक्खडपन और हरयाणा से संबंध रखने के कारण पीठ पीछे मुझे ताऊ कहते थे...फ़िर जब हिंदी मे ब्लाग लिखना शुरु किया तो उनकी खुशी और इच्छा देखते हुये मैने इसका नाम ही ताऊ डाट इन रख दिया. और आज भी ब्लागर्स से ज्यादा मेरे पाठक वही हैं.
सवाल-3; "ताऊ पत्रिका" के प्रसिद्धि के पिछे कोन सा फ़ेक्टर मुख्य रहा- "ताऊ" नाम या "ताऊ" कि चारित्रिक,वैचारिक, भुमिका ?
उत्तर : आप किसी एक बात को इसके लिये श्रेय नही दे सकते. असल मे हम मौलिक रुप मे तो आज भी भारतीय ही हैं...ये जो पश्चिमी संस्कृति का चोगा हमने ओढ रखा है वो अंदर ही अंदर बैचेन करता है...और ताऊ के चरित्र के साथ इतना आत्मिय रिश्ता असल मे अपनी जडों की और लौटना ही है. थोडी देर यहां आदमी अपनी ओढी हुई तस्वीर छोड देता है. यहां ताऊ के सामने आदमी अपनी ओरिजिनिलिटी मे आता है...बिल्कुल अपने आपको बच्चा महसूस करके थोडी देर तनाव मुक्त हो जाता है.
सवाल-4; बहुत ही अल्पसमय मे ~ताऊ~ ब्लोग ने हिन्दी ब्लोग जगत के सारे रिकोर्ड धवस्त कर अपने आप को शिखर पर पहुचा दिया, इस सफ़लता से पाठको की आपसे अपेक्षा बढ गई है, ऎसे मे आपको नही लगता की अब जिम्मेदारीयो का दबाव अधिक हो गया है ?
उत्तर : आपका कथन कुछ अर्थों मे तो सही है पर इसमे रिकार्ड ध्वस्त करने जैसी कोई खास बात नही है. इस ब्लाग की सफ़लता की असली वजह इसका मौलिक लेखन है. हालांकि चंद लोग इसमे भी नकल देखते हैं. अगर हम वाकई मौलिक की बात करें तो मेरी समझ मे परमात्मा के अलावा मुझे तो दूसरी कोई मौलिक चीज दिखाई नही देती. जैसा की मैने अपने प्रोफ़ाईल मे भी लिखा है कि मैं तो अपने आसपास की घटनाओं मे ही अपने लिखने की सामग्री ढूंढ लेता हूं..बस उस घटना को मैं अपनी भाषा मे ज्यों का त्यों रख देता हूं..अब इस शैली कॊ लोगों ने पसंद किया है तो मैं उनका शुक्रगुजार हूं.
जहां तक जिम्मेदारियों का सवाल है तो मैं मैं ऐसा कोई कमिटमैंट लेकर नही चलता. जितना हो सकता है उतना लिखता हूं..मूड नही हो तो नही भी लिखता.सवाल-5; ताऊ की भुमिका निभाते निभाते क्या अब आप स्वय को ताऊ समझ बैठे है ?
उत्तर : ना. कतई ना. जितनी देर लिखता हूं उतनी देर ताऊ की आत्मा मुझ पर सवार रहती है बाकी तो मैं भी आप लोगों जैसा ही कामकाजी आदमी हूं.
सवाल-6; ताऊ के चरित्र को जीना सरल है या कठीन है ?
उत्तर : अब ये तो मैं नही जानता..पर ताऊ के चरित्र को जीते जीते आदमी सहज जरुर होजाता है. जो एक उपर की ओढी हुई शराफ़त की गंभीर छवि है वो हट जाती है और आदमी निर्भार हो जाता है.
सवाल-7; : इसको थोडा समझाईये?
ताऊ : देखिये इसमे समझने और समझाने जैसा कुछ नही है. हर आदमी अपने आपको वो दिखाना चाहता है जो वो है नही. हर आदमी अपने को शरीफ़ और सामने वाले को बेईमान सिद्ध करने की कोशीश करता है. यहां ताऊ के चरित्र को देखिये...वो सारी हरकते खुद ही करता है..यानि चोरी, बेइमानी, डकैती..मुर्खता खुद ही करता है. यानि वो सारी चोट खुद पर करते हुये ही व्यंग करता है और यही स्टाइल पब्लिक पसंद करती है.
ताऊ किसी दूसरे पर तोहमत नही लगाता....अपनी खिल्ली उडाकर ही हास्य के रुप मे व्यंग करता है.
सवाल-8; : ये खुद की खिल्ली उडाना कहां से सीखा?
उत्तर : ये कोई सीखने की चीज नही है. बस इतना कहुंगा कि समीरलाल जी को इस विधा का माहिर मानता हूं...उनके लेखन को बारीकी से पढने के बाद मैने इस लीक पर चलना शुरु किया.
सवाल-9; : क्या ये व्यंग लोग समझ पाते हैं?
उत्तर : हां ज्यादातर लोग बहुत ही स्पष्टता से समझते हैं और यही उनको बार बार यहां खींच लाता है. पर कुछ सिरफ़िरे या तथाकथित गंभीरता का खोल ओढे बैठे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे लफ़्फ़ाजी कहते हैं..पर मैं तो उन्हें भी धन्यवाद ही देता हूं कि उन्हे कुछ तो लगा? उनका ध्यान तो खींचने मे सफ़ल हुआ.
सवाल-10; क्या घर वाले, दोस्त, रिस्तेदार भी आपको ताऊ नाम से पुकारते है ?
उत्तर : ना जी. कोई पहचानता नही इस नाम से. ताऊ सिर्फ़ ब्लाग जगत से ताल्लुक रखता है. बाकी मेरी निजी जिंदगी ताऊ से बिल्कुल जुदा है. बाकी आजकल ताऊ की बेफ़िक्री कभी कभी अपने उपर आजमाता हूं तो बडा सहज महसूस करता हूं एकदम भारहीन.
सवाल-11; ताऊ की बात चल रही है और रामप्यारी की बात नही चले तो बात अधूरी रह जाऎगी. आप तो यह बताऎ रामप्यारी का "ताऊ के हिट" होने मे कितना योगदान है ? क्या ताऊ को रामप्यारी की लोकप्रियता से डर नही लगता ?
उत्तर : जहां तक हिट होने का सवाल है तो जब कोई चरित्र पापुलर हो जाता है तो उसको इस कोण से देखा जाता है. पर वास्तविकता तो यही है कि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. दोनों ही चरित्र अब तो एक द्सरे मे समा गये हैं. एक को याद करते ही दूसरे का चित्र आंखों के सामने आजाता है.
सवाल-12; कुछ भ्रान्तिया है की ब्लोगिग दाऎ बाऎ हाथ का खेल है, लिखा, छापा और हो गई ब्लोगिग, इस पर आपकी प्रतिक्रिया अहम है. क्या इस धारणा के साथ नियमित ब्लोगिग की जा सकती है ?
उत्तर : बात आपने बडे सलीके की पूछी है. आप ऐसा कर सकते हैं इसमे क्या अडचन है? पर सवाल ये है कि आप कितने दिन ऐसा कर पायेंगे? जब तक आप दूसरों को नही पढेंगे.. आप उन पर अपनी प्रतिक्रिया नही देंगे..तब तक कोई आपके लिखे पर प्रतिक्रिया नही देगा. यानि ये पूरी तरह से शादी का लिफ़ाफ़ा है. तो ब्लागिंग के मायने सबके लिये अलग अलग हैं.
आप लिखकर छोड गये..प्रतिक्रिया से कोई मतलब नही तो शायद ये ब्लागिंग नही हुई. क्योंकि यह दुतरफ़ा संवाद की सुविधा है लेखक और पाठक के मध्य. निजी रुप से मैं इसे परस्पर संवाद का माध्यम मानता हूं.सवाल-13; आपने इतने कम समय मे १५००० हजार टिप्पणियां प्राप्त की हैं जो की अपने आप मे कीर्तिमान ही है. ज्यादा टिप्पणीयो के कारण प्रसन्नता होना स्वाभाविक है, पर क्या कम टिप्पणीयो ने कभी आपको विचलित किया ?
उत्तर : शुरु मे तो टिप्पणीयां आती ही नही थी. और मालूम ही नही था कि इस तरह से कुछ टिप्पणीयां भी की जाती हैं. हम लोग तो पोस्ट लिखकर सब लोग आपस मे फ़ोन पर गप्पे लगाते थे. फ़िर एक रोज कहीं से उडनतश्तरी जी कहीं से प्रकट हुये...मेल आया कि ताऊ क्या नाराजी है? कमेंट करना तो अलाऊ करिये..तब जाकर कहीं टिप्पणीबाजी मे पडे.
सवाल-14; हिन्दी ब्लोग जगत मे आप किसे ? एवम कैसे विषय को सबसे ज्यादा पढना पसन्द करते है?
उत्तर : अगर आप मुझसे यह पूछें कि कौन ब्लागर मेरा पसंदीदा लेखक है? तो बिना सोचे कहुंगा अनूप शुक्ल फ़ुरसतियाजी, निसंदेह मुझे उनका लिखा पढना कम और बात करना ज्यादा लगता है. उनकी लेखन शैली का मुरीद हूं.
सवाल-13; क्या आप पहले अग्रेजी मे ब्लोग लिखते थे ? अग्रेजी ब्लोग की सफ़लता, हिन्दी ब्लोग की असफ़लता, क्या सफ़लता-असफ़लता का मुख्य कारण भाषा को मानते है.?
उत्तर : हां जब हमको मालूम नही था कि हिंदी भी लिखी जा सकती है नेट पर तब तक सारी गप्प गोष्ठियां हम अंग्रेजी मे ही करते थे पर सार्वजनिक रुप से. अब जहां तक भाषा का सवाल है तो इसमे कोई दो राय नही है कि आज भी अंग्रेजी की पहुंच बहुत बडी है. अगर हमको हिंदी के लिये ये ख्वाब देखने हैं तो बहुत लंबा रास्ता तय करना है. और सभी लोग लगे हुये भी हैं. थोडा समय तो लगेगा पर मुझे यकीन है कि एक रोज हम मंजिल अवश्य पा जायेंगे.
सवाल-14; ब्लोगिग सफ़र मे किसे सफ़ल, किसे असफ़ल कहेगे ? इसका कोई पैमाना है क्या ?
उत्तर : ब्लागिंग क्या? जीवन मे किसी चीज के कोई तय पैमाने नही हैं. एक भिखारी सुबह मंदिर मे भगवान से अपने लिये १०० रुपये की मजदूरी आज मिल जाये इस कामना के साथ दर्शन करने जाता है वहीं एक सेठ सुबह इसलिये दर्शन करने जाता है कि आज उसे २५/५० लाख का मुनाफ़ा होजाये? यही बात ब्लागिंग मे है...आप स्वयम अपने लिखे से कितने संतुष्ट हैं? और पैमाना आप स्वयम ही तय कर सकते हैं.
धार्मिकता एवम आध्यात्मिकता भी आपके पसन्द के प्रमुख विषयो मे से एक है मग्गबाबा चिठ्ठे द्वारा नियमित इस तरह के विषयो पर अपने विचारो का सम्प्रेषण आप करते रहे है-
प्रशन=15; धर्म क्या है ?
उत्तर : मेरे लिये धर्म एक जीवन शैली का नाम है. निजी रुप से प्रचलित धर्म के तरीके मैं नही मानता. या युं कहले कि धर्म सबकी अपनी निजता है.
सवाल-16; क्या आप धर्म को बुद्धिगम्य मानते है या श्रद्धागम्य ?
उत्तर : धर्म को पहले बुद्धिगम्य मानना होगा अगर आपकी बुद्धि को यह रास्ता समझ आगया तो श्रद्धा तो उसकी परिणीति है जो हो ही जायेगी. उसके बाद कुछ करना नही होगा. जो होगा स्वत: होगा.
सवाल-17; क्या धर्म सम्प्रादायिकता मे अटक गया है ?
उत्तर : नही सिर्फ़ राजनितिज्ञों तक. एक आम नागरिक को इससे कुछ भी लेना देना नही है. इन चंद नेताओं को गोली मार दिजिये फ़िर देखिये कि यह सवाल उठता है या नहीं?
सवाल-18; भगवान महावीर, एवम भगवान बुद्ध के सन्देशो मे काफ़ी समानताऎ है- ऎसे मे आजके युग मे दोनो कितने प्रासगिक है?
उत्तर : महावीर और बुद्ध कभी भी अप्रासंगिक नही हुये और ना कभी होंगे. इन दोनो के जीवन मे ही एक उंचाई आई जहां से लौटना मुमकिन नही था. बस सब कुछ त्याग दिया. और यह स्वाभाविक है. आज बिल गेट्स ने क्या किया? उन्होने भी सब कुछ त्याग दिया. क्या वो महावीर या बुद्ध के अनुयायी थे? नही ना? मेरी निगाह मे आप महावीर और बुद्ध को किसी धर्म विशेष से नही बांध सकते. पूरी मानवता ही उनके बताये मार्ग पर स्वत: ही चलती है. हां शर्त सिर्फ़ इतनी है कि वो अवस्था आनी चाहिये.
सवाल-20; तेरापन्थ के आचार्य महाप्रज्ञजी को अगर आपने कभी पढा हो, दर्शन किऎ हो, तो उनके बारे मे अपने विचार दे.
उत्तर : आचार्य जी के बारे मे पढने या मुलाकात का सौभाग्य नही मिला. जो कुछ भी पढा वो आपके माध्यम से ही पढा अत: इस बारे में कुछ भी कहना मेरे लिये बडा अनुचित होगा
ताऊजी, आपने अपना कीमती समय हमे दिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
धन्यवाद की कोई बात नही है महावीरजी! जब आप, मुम्बई से इन्टव्यू के लिऐ यहॉ तक आगऐ तो हमे समय तो देना ही था।
विशेष सुचना- हमारे सहवर्ती पहेलियो के ब्लोग SELECTION & COLLECTION मे पहेली क्रमाक 9 मे ताऊ से सम्बन्धित एक सवाल करा गया। इसी उपलक्ष मे ताऊ की यह मुलाकात उनके निवास स्थान पर कि गई। चुकी नियमाअनुशार उपरोक्त बातचित सलेक्शन और कलेकशन पर बुधवार को प्रसारित होनी थी किन्तु तकनिकी कारणो से इसे "मुम्बई टाईगर" पर प्रसारित कर रहे है जिसका अनुमोदन हमारे अन्य चिठ्ठे " हे प्रभू यह तेरापन्थ"- एवम सलेक्शन और कलेक्शन सहर्ष प्रसन्ता पुर्वक कर रहे।
विशेष इसी कडी मे ताऊ कोन ? एक खबर के मुताबिक ताऊ को विभिन्न रुपो मे देखा गया। कभी मनुष्य के रुप मे, तो कभी वानररुप मे। ऐसी किदवंतिया है कि ताऊ के अनेक रुप है-रंग है। ताऊ कोन ? इस पर हम विभिन्न चिठाकारो के पुर्व मे दिऐ व्यक्तव्यो को क्रमश: भाग-2 को एक दो दिन मे प्रसारित करने जा रहे है।
सम्पादक मण्डल हे प्रभू यह तेरापन्थ