राखी का राम मन का मोहन स्वयवर से भागा: दुल्हे ने कहा ना बाबा ना

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राम कि तलास मे सीता बनी राखी

वहा भाई वहा! कुछ दिनो से चर्चा मे रहा कलयुगी "स्वयवर" के एक दुल्हे ने राखी सावन्त को ना बोलकर रिजेक्ट कर दिया। प्रोग्राम के फोरमेट के अनुसार केवल राखी को ही वो अधिकार थे की किसी भी बनावटी "देवदास दुल्हे" को रद्दी की टोकरी मे फैक सकती है। किन्तु यहॉ उसके ठीक उल्टा  
"छोरा गगा किनारे वाला" पावन धाम "ऋषिकेश" के मनमोहऩ तिवारी ने तो आव देखा ना ताव दो दिन पुर्व ऋषिकेश कि हॉटल मे जहॉ राखी सावन्त ठहरी हुई थी रात मे जाकर राखी को "रिजेक्टवा" कर दिया, यानी शादी ना करने की बात कर राखी को  "जोर का झटका धिरे" से दे दिया। राखी हतप्रत थी कलयुगी राम बनेने चले मनमोहन के वकीलिया बुद्धि को लेकर। मनमोहन ने राखी को जहॉ ना बोला वहा स्वयवर आयोजित करने वालो की भुल हो गई की होटल मे कैमरे नही थे। बस वही मनमोहन ने वकीलिया बुद्धि यूज कर डाली और ऑफ द रिकार्ड राखी से बात कर आया। राखी ने बाद मे ऑन रिकार्ड टीवी मे मनमोहन को भलाबुरा कहा। राखी ने कहा-" मनमोहन मेरे ड्रायवर और सैक्रेटी से गया गुजरा है, राखी ने आगे कहा-" मुम्बई की सडको पर हजारो मनमोहन घुमते है।" कहने का अर्थ "खिचीयानी बिल्ली खम्बा नोचे।"
 इससे यह बात तो साफ हो जाती है शादी जैसे पवित्र बन्धन का कलयुग मे बाजारीकरण नही किया जा सकता। आजके युग मे जिस राम कि तलास मे सीता बनी राखी जिस रास्ते निकली पडी थी, उसी स्वयवर के सभी  उम्मेदवार प्रसिद्धि, नाम, गैलमर के चक्कर मे भारतीय सस्कृति का बन्टाधार करने को तुले थे। इसका अन्त क्या होगा यह तो पत्ता नही, पर क्या राखी ने चैनल से मिलनेवाले कुछ धन-बल के चक्कर मे,  
स्त्री धन {मर्यादओ- सस्कारो-और भारतीय सस्कारो-परिवारिक सामाजिक मर्यादाओ} को अरक्षित/ असुरक्षित नही किया ?

क्या प्यार ब्याह इतना बाजारु हो गया की खुल्ल्म खुल्ला सडको पर किया जाऍ ?  
राखी पुछती है -" मै आईटम गर्ल हू यह बात शादी मे रोडा तो नही बनगी ?"
अरे राखी जी !  आप "आईटम गर्ल" है तो यह लडके कोन से दुध के धुले हुऍ है सभी तो आईटम-बॉय है।
हम तो भगवान से दुआ ही करेगे की राखी इस स्वयवर मे एक पति को जीते व जीवन भर यह रिस्ता मजबूत रहे।

 सभी के लिए जितनी जिम्मेदार राखी है,  उतने ही उसके उम्मीदवार डायरेक्टर, निर्माता, स्टोरी लेखक, चैनल भी है। अब शो देखने वालो के लिए क्या कहू ? क्यो कि मै भी तो  देख रहा हू।
"पैसा फैक तमाशा देख," भाई! पब्लिक है यह सब जानती है।

धनचक्कर गुरु हम स्वय है।

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 GURU
फो पर सारथी वाले शास्त्रीजी से बातचीत हो रही थी। शास्त्रीजी ने पुछा-" ओर धन्धा-पानी कैसे चल रहा है ? " 
मैने कहा-"गुरुदेव मन्दा है।"  
शास्त्रीजी ने राय दी क्यो ना आप किसी अदद ज्योतिष गुरु को पकडे, और कुण्डली बताए।" 
मैने विस्मय भाव से कहा- "गुरु! इसके लिए भी "गुरु" बनाना पडेगा ?" 
अक्सर टीवी मे ज्योतिषगण चोबिसो घण्टे कुछ ना कुछ समझाते ही मिलते है। मुझे लगा अब इन महाज्ञानीयो से बच पाना नामुमकिन ही है।
लतः मै अपनी जन्म कुण्डली समेत एक लेपटॉपधारी पन्डितजी की दुकान पर गया तो वह उल्ट-पल्ट कर बोलते गए- " वत्स तुम्हारा फेस देखकर ही मालुम दे रहा है कि गुरु के प्रभाव का जातक होने के चलते मामला अत्यन्त धातक है, अगले माह से गुरु वक्रि है, आगे सकट ओ‍र भी प्रचन्ड है, आठ महिने के बाद गुरु फिर से अपनी मूलमार्गी चाल मे लोट आएगा, उसके बाद ही शुभ फल देगा, सब ग्रहो की चाल का परिणाम है बच्चा।" अगर अनिष्ट फल से बचना चाहते हो तो अपने घर पर पुजा रखवा लो।"
मै मन ही मन बोला,-" पण्डितजी महाराज! ग्रहो की चाल का तो मुझे पता नही, लेकिन आपकी चाल जरुर मेरी समझ मे आने लगी है।" 
बहराल, मै इतनी जटिल विधा पर शका करके पाप का भागीदार नही बनना चाहता था। सो चुप ही रहा। धर्म मै विश्वास जरुरी है। फिर भीतर भीतर कही यह डर था कि जब बडे बडे तक अपने गुरुओ की वक्रि चाल के लपेटे मे आ जाते है तो मेरी क्या ओकात?
हा गया है प्रबल गुरु मिल जाए तो फलदायी है अन्तथा कष्ट ही कष्ट है। 
बहराल, ये पण्डितजी तो गुरुओ के भी गुरु निकले। 
झटपट उन्हे दक्षिणायित किया और मै वहॉ से फुट लिया।
पुनः घर आकर 29"  बुद्धु बक्से (टीवी ) का रिमोर्ट  लेकर चैनलो के मनके जपने लग गया हू। किसी नए गुरु की तलास मे  हू। 
सा भी नही है कि मेरा "गुरु-चोट की चपेट मे आना पहळी बार हुआ है, विघाज्ञान का श्री गणेश गुरुजी के डन्डे से ही हुआ था। आज भी हाथ की हथेली पर तकदीर की लकीरो से ज्यादा सन्टी के निशान ज्यादा है।  
जब भी मेरे मित्र जयपुर वाले आशिषभाई खण्डेलवाल पुछते है कि -"कहो गुरु", का हाल है ?" मुझे तत्काल अपने स्कुल के गुरुदेवगणो की तुडाई याद आ जाती है। उस टाइम नारा लगाए करते थे -

"छत्रन गुरु की क्या पहचान, 
हाथ मे सोटा, मुह मे पान।"

गुरु गाथा मे वे नागपुर वाले गुरुजी भी आते है, जिनकी लाठी आज भी बीजेपी वालो को सियासत की वैतरणी फन्दवाने के काम आती है।

इस दुनिया मे एक से एक गुरु हुए है और एक से बढकर एक गुरुघन्टाल भी हुए है।
सच्चे भी कच्चे भी।  
धर्म गुरु भी।  
अधर्म गुरु भी।  
डान्स के गुर।  
रोमास के गुरु।  
म्यूजिक के गुरु।  
अखाडे के गुरु।


 खैर, मेरे ताजा-ताजा उपजे कनपुरिया धनचक्करगुरु ने मुझे  गुरुमन्त्र दिया है कि फसना ही चाहता हू तो "टेक्स गुरुओ" के चक्कर मे फसू अथवा शेयर गुरु की चरण मे जाऊ।

योग गुरु की बॉहे थामू। मैनेजमेन्ट गुरु से कला सीखू।  आज बाजार मे फैशन गुरु से लगाकर ई गुरु
ब्लोग गुरु, तमाम   ब्रान्ड के गुरु उपल्ब्ध है। 

 इस लेख को व्यग के रुप मे पिरोया गया है।
जाने अनजाने किसी को कष्ट हुआ हो तो मै  क्षमा मागता हू।

बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज ने ताऊ को दिया निम्बु मिर्च

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ताऊ ने लगाया निम्बु मिर्च
स्वर्गलोक मे कल रात बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज गहरी निद्रा मे सो रहे थे । बाबाजी ! सपना देखते है, कोई चिठ्ठाकार दोनो हाथ से धोती पकड कर व बाहो मे लठ लिए हाफता भागता स्वर्गलोक कि ओर आ रहा है।  पिछे लोगो का हुजुम उस पकडने के लिए भाग रहा है।  
बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज ने अपनी दिव्यदृष्टि लगाकर देखा। अरे! यह तो अपना शिष्य  हिन्दी का चिठठाकार ताऊ है। ताऊ से बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज ने पुछा -"क्या बात है ताऊजी ?" बडे ही चिन्ता के भाव लिए मेरे दरबार मे आऐ हो ?" और यह लोग कोन है जो तुम्हारे पिछे लगे है ? और क्यो?"
ताऊ ने अपने गले मे पडे गमचे से पसीना पुछा और बोला- "महाराजजी! यह सभी असन्तुष्ट प्राणी है।  मेरे तेरह महीने के ब्लोग कार्यकाल के प्रसिद्धि एवम सफलता को कुछ लोग पचा नही पा रहे है। इनकी बदहजमी यहॉ तक पहुच गई की मेरे एवम "ताऊ डाट इन" के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे है। 
बाबाजी! आपने मुझे यह किस झमेले मे डाल कर आप स्वर्गधाम मे आराम फरमा रहे है।"
बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज  ने चुटकि बजाई तभी अप्सराए हाजिर हुई। 
समीरानन्दजी महाराज-  अप्सराओ कि और मुख्खातिब होते हुऍ बोले -" यह हमारे सेले ताऊ है। बहुत दुर धरती-लोक से आऐ है। थके प्यासे है। पहले तो तुम एयरकन्डीशन (A/C) चालु कर दो,
फिर दो गिलास शरबत हाजिर करो।" अप्सराए शरबत लाने चली गई।
अब बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज  ने अपने मुख से अमृताशब्दो कि बारिश करते  हुए ताउजी से कहते है-" देख ताऊ! तुमने "ताऊ डाट इन"  को एक साल चार महीने मे जिस बुलन्दियो पर पहुचाया है यह बात मुझे भी हजम नही हो रही है  ! तो इन तुच्छ मानवो कि क्या बिसात जो बिना जले रह सकते है। उन्हे जलना तो था ही। यह "जलशी" का किडा तो प्रत्येक मानव मे मैने फिट कर रखा है। और टेशन नही लेने का ताऊ! 

कोई रेडीमेड सफलता तो मिली नही तुम्हे , चिठठाजगत मे रात दिन कि कडी मेहनत, सकारात्मक, रचनात्मक सोच के बाद तूम्हे यह  मुकाम हासिल हुआ है। तेरी "सत्ता" स्वीकार करने मे ऐसे लोगो को कुछ वक्त लगेगा, तुम्हारी "बादशाहत" को एक ना एक दिन स्वीकार करना ही करना है ताऊ।" ताऊ इसका मुलकारण है तुमने कभी भी "चिठ्ठे" का बेजा फायदा नही उठाया, तुम्ह ने शब्दो का स्तेमाल क्षिक्षा स्वरुप किया। छोटी छोटि आम मानवीय जीवन मे घटने वाळी  घटनाओ कुरितियो  को पात्रता के रुप मे अपनी आत्मा की  भाषा मे पिरोकर कुशल शिक्षाप्रद अपने ब्लोग पर अभिनय कहू या मचन कहू ताऊ वो तूमने किया है।" 
हुका पीते हुऐ ताऊ - बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज से पुछते है- "महाराज! इब इसका इलाज किया और कब तक ? "
बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज -"अरे ताऊ! कै बावली बूस कि तरह उतावाला होवे छे, यह सक्रमण काल छे समय पर ठीक हो जावेगा।" थोडा धिरज बान्ध ताऊ!  
समीरानन्दजी महाराज -"ताऊ!  फेम (प्रसिध्द् )बनने के बाद  व्यक्ती को अपने लिए नही पब्लिक के लिए जीना पडता है।  फेम (प्रसिध्द्)  व्यक्ती को यह छोटी सी किमत तो चुकानी ही पडती है। 
ताऊ-"महाराजजी! मै फैमस कब हुआ मुझे तो पता ही नही चला ?-" 
तभी एक अप्सरा शरबत लिए बाबा समीरानन्दजी महाराज के दरबार मे हाजिर होती है। ताऊ घटा-घट शरबत हलक के निचे उतार देता है।! 
मुस्कराते हुए अपने दिव्य एवम ओजस्वि शब्दो का इस्तेमाल करते हुए  बाबा श्री समीरानन्दजी महाराज फरमाते है-" ताऊ!  20 जून 2009 को आपने एवम मेरा प्रिय बालशिष्य आशीषजी खंडेलवाल ने   "ताऊ डाट इन" पर 1०,००० वीं टिपणी  की घोषणा ने तुम्हे नम्बर वन पर ला खडा कर दिया। बस लोगो कि ऑखो मे किरकिरी पैदा होने के कारणो मे यह भी एक मुख्य कारण है।"

ताऊ-" इस नजर टोकार के लिए कोई इलाज मन्त्र सन्त्र ?"

बाबा समीरानन्दजी महाराज -" मेरे प्रिय शिष्य मैने आजकल टोटके टाटके करना बन्द कर दिया है। पर तुम मेरे प्रिय हो ताऊ, इसलिए जाते समय बाहर के कक्ष मे   "हे प्रभु" ध्यानास्थ है  उन्ह से कहो वो तुम्हे मेरे द्वारा अभिमंत्रित "निम्बु- मिर्च देगे वो "ताऊ डाट इन" पर अगरबत्ती का धुप कर शुक्रवार को मेरा मनन कर टॉग देना। ताकी बुरी आत्माओ का छाया "ताऊ डाट इन" पर ना पडे।"
ताऊ -" बाबाजी आपने मुझे शान्त कर दिया अब मुझे जाने की आज्ञा प्रदान करे, मगल पाठ सुनाए। "
बाबा समीरानन्दजी महाराज  मगल पाठ देते हुऐ धरती-लोक के लिए निम्बु मिर्ची के साथ ताऊ को  रवाना करते है।
बाबा समीरानन्दजी महाराज का मगल पाठ

" मैं दीपक हो के बुझ जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
मैं तूफानों से डर जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता
न मैने तैरना सीखा, मगर है हौसला दिल में
मैं दरिया पार न जाऊँ, ऐसा हो नहीं सकता.  "


ताऊडॉट इन कि कुछ खबरे
असली ताऊ कौन ?
आज साल 2008 का अंतिम दिन है ! आज मुझे हिंदी के सार्वजनिक ब्लागिन्ग में कुल 7 माह और 9 दिन हुये हैं. इस बीच  आज की पोस्ट सहित कुल 144 पोस्ट इस ब्लाग पर मेरे द्वारा लिखी गई ! और 56 पोस्ट मग्गा बाबा पर ! इस तरह कुल दो सौ पोस्ट इस अवधि में लिखी गई ! और दिसम्बर 08 मे पूरी 31 पोस्ट लिखी गई ! यानि प्रति दिन एक !
Wednesday, December 31, 2008 at 12:11 AM Posted by ताऊ रामपुरिया


महाबाबा ताऊआनंद : हे मेरे परम प्रिय ब्लागरों, अपना संपुर्ण ध्यान लगाकर सुनो कि हम कैसे ब्लागरत्व को प्राप्त हुये. बडा दुरुह और कठिन कार्य है. पर भक्त जनों जिसने एक बार ब्लागरत्व प्राप्त करने की ठान ली. वो भला बिना पाये विश्राम कैसे करेगा?
Saturday, June 6, 2009 at 8:00 AM Posted by ताऊ रामपुरिया


आज ताऊ के  ब्लाग की उम्र एक साल हो गई है यानि आज ताऊ की वर्षगांठ है…अरे नही….. नही……ताऊ की नही ..इस ब्लाग की वर्षगांठ है.  इस एक साल मे ताऊ ने  फ़ुल साईज 281 पोस्ट लिखी. जिन पर ताऊ को करीब 8450 कमेंट प्राप्त हुये.

आज मैं आपका हृदय से आभारी हूं कि २० जून २००९ को आपने इस ब्लाग पर १०,००० वीं टिपणी करके आपका स्नेह और आशिर्वाद मुझे दिया. मैं अभिभूत हूं. जिसने एक भी टिपणी दी है उनका भी मैं आभारी हूं. बिना उनकी एक टिपणी के भी यह अधुरा ही रहता.
Monday, June 22, 2009 at 2:09 PM Posted by ताऊ रामपुरिया

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal)
June 22, 2009 5:48 PM
@ Makrand, सभी चिट्ठों में से यह पता लगाना तो काफी श्रमसाध्य कार्य है कि किस-किस चिट्ठे पर दस हजार टिप्पणियां हो चुकी हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी और मानसिक हलचल वाले ज्ञानदत्त जी अभी तक इस दस हजारी क्लब में शामिल थे और लेटेस्ट व धमाकेदार एंट्री ताऊजी की हुई है। अगर किसी साथी को दूसरे नाम पता हों तो बताने का कष्ट करें।

अब आपको बजट वाले दिन हिन्दी के धुरन्द्र चिट्ठा-लिखाकारो के पास लिए चलता हु।

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अर्थपूर्ण-अर्थहीन

हमारे देश मे बजट ने कुछ कुछ उत्सव का स्वरुप ले लिया है। लोग कयास लगाने लगते है। वे भले अर्थशास्त्र की बारीकियो मे न जाए पर वे इस विमर्श मे जरुर जुट जाते है कि  बजट उनके रोजमरा  के जीवन पर क्या असर डालेगा, उन्हे  कितना सुखी बनाएगा। वे एक विचित्र मनःस्थिति से गुजरने लगते है। बजट से लोगो का यह जुडाव आश्चर्यजनक है। एक तरफ तो लोग धर्न-कर्म और सस्कृति मे खुब आस्था जताते है, जिसमे 'धनसचय और भोतिकता को निषेद किया गया है। लेकिन  दूसरी तरफ वे इस बात को लेकर चिन्तातुर भी रहते है कि कही उनका स्तर कम ना हो जाए। वे इस होड मे पिछड न जाए। मिडल क्लास के जो लोग सत्सग मे रमे रहते है  वे भी इस बात को लेकर सतर्क रहते है कही उनका बजट न गडबडा जाए।
एक व्यगः अर्थपूर्ण-अर्थहीन बजट पर

पने देश  मे ज्यादातर पढे लिखे लोग बजट के मामले मे विद्धवान ही होते है।  हॉलाकी उनको कोई सरकारी फार्म भरने या एप्लिकेशन लिखने मे पसीना छुट जाता है, फिर भी बजट पर वे अपनी कोई रॉय अवश्य रखते है।जैसे हर हिन्दुस्थानी बीमारी के मामले अपनी कोई न कोई राय जरुर रखता है। भले ही वह डाक्टर, कम्पाउन्डर ना हो।
इस बार बजट दो बार हो गया। आम तोर ब़जट एक बार ही होता है। लेकिन इसके विद्धवान कई किस्म के होते है।
अब आपको बजट वाले दिन हिन्दी के धुरन्द्र चिट्ठा-लिखाकारो के पास लिए चलता हु। 

ज्ञानदत्तजी, अपने दफ्फतर मे टीवी खोल बैठे है। उन्हे कल ऑफिस  अर्जेन्ट डिस्पैच रजिस्टर तैयार करना था ,लेकिन वे बजट सुन रहे थे। अब हम सभी जानते है कि उन्हे इस राष्ट्र कर्म के बीच टोका नही जा सकता।
मेरे एक ब्लोगर मित्र आशिष खण्डेलवालजी  घर से कह के जाते है कि आम बजट है देर से लोटूगा, और राजमन्दिर मे नाईट शो देखकर लोटते है।
ये सब बजट के विद्धवान है, जानते है कि इसे रोजमरा की जिन्दगी मे कैसे इतेमाल करना है।
कुछ लोग बजट  की तैयारी वित्तमन्त्री से भी पहले से करना शुरु कर देते है। वे सारे सम्पर्क टटोलते है, उस दिन कही कमेन्ट या लेख छप जाऍ, किसी पैनल-डिस्कशन मे नाम आ जाए। किसी टीवी चैनल पर कोई स्लॉट मिल जाऐ।
ताऊ! वितमन्त्री को बोलते हुऐ सुनते है कि कमॉडीटी ट्राजैक्शन पर टैक्स हटाया जाएगा। वह
राज भाटीयाजी की और मुह कर के गम्भीर स्वर मे बोलते है, इसमे मिडल क्लास को बहूत फायदा होगा। असल मे तो ताऊ को पता ही नही है कमॉडीटी ट्राजैक्शन  टैक्स चीज क्या है,  लेकीन सोचते है यह बाजु मे बैठा बन्दा क्या जानता होगा।
भाटिया़जी, सचमुच कमॉडीटी ट्राजैक्शन  टैक्स  के बारे मे नही जानते, पर ताऊ कि बात सुनकर चिढ जाते है, रोब गाढ रहे है । बडे आऐ है अर्थशास्त्र झाडने। भटियाजी और ध्यान से टीवी सुनने लगते है। अचानक सुनते है कि "इफ्रास्ट्रक्चर फॉइनैस कम्पनी" बनेगी। यह बढिया है भारी भरकम नाम है। 'इफ्रास्ट्रक्चर' मतलब ढॉचा-मतलब सडक-मतलब-बिजली,बन्दरगाह। वे सब भी जानते है अच्छा मोका है। वे ताऊ कि और मुह कर के बोलते है -' कमॉडीटी ट्राजैक्शन तो खैर ठीक है, मगर इफ्रास्ट्रक्चर फॉइनैस कम्पनी से ज्यादा लाभ होगा। शाम दोनो ही भुल जाते है कि  उन्हे बजट के किस हिस्से ने प्रभावित किया।
नेहरुवियन इकॉनमी के दिन बीते, इन्दिरा का समाजवाद पीछे छूट गया, आर्थिक उदारिकरण और वैश्वीकरण के भी लगभग दो दशक पुरे होने जा रहे है। लेकिन मध्यवर्ग का आदमी आज भी बजट मे अपनी वही दो पुरानी चीजे ढूढता है- इनकम टैक्स की स्लैब बढी या नही और ट्रेक्टर, टीवी,-टुथपेस्ट सस्ता हुआ या नही।
पिछले पचास सालो से अगर कोई निशिचत है तो वह है सिगरेट पिने वाला, तम्बाकु खाने वाला। क्यो कि उसे पता है कि बढेगा ही बढेगा ।


 
देश के हर नागरिक पर 1177 रुपयो का विदेशी कर्ज
देश के हर नागरिक पर लगभग 1177 रुपये का विदेशी कर्ज है। चाहे वह नवजात शिशु ही क्यो ना हो। यदि घरेलु कर्ज को जोड ले तो यह रकम हर भारतीय पर लगभग 29800 रुपए हो जाएगी।



 
पाकिस्थान से भारत को वसूलने है 3०० करोड
भारत पिछले ६० वर्षो मे पाकिस्थान से 3०० करोड नही वसुल पाया। दिलचस्प बात है कि इस राशि का भुगतान 1950-51 से ही लम्बित है।
इस बात की एक रपट गत वर्ष सुरेसजी चपलुनकर जी ने अपने ब्लोग पर भी दी थी।



विशेष-:यह एक व्यगात्मक सोच थी इसमे जिस किसी का भी नाम उल्लेखित है वे भारतिय जनमानस की भुमिका मे मेर हिरो है जो आदरणिय है।
कही भी आपका दिल दुखाया हो तो क्षमा चाहता हू,
आभर जी
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर