रंग रूप और ये काया , हे! ताऊ ये तेरी माया भाग - 2
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ताऊ
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रंग रूप और ये काया , हे! ताऊ ये तेरी माया भाग - 1 में हमने ताऊ पहेली के पचासवे अंक में प्रवेश की चर्चा की थी. आज हम इसके किरदार पर नजर डालेगे की आखिर में यह जादुई शख्सियत है कोन ? जो ताऊ के चरित्र को जीवंत बना कर हिंदी चिठठा जगत को अपनी लोकप्रिय छवि का लोहा मनवाने में सफल हुए है.करीब डेढ़ वर्ष के अपने ब्लॉग कार्यकाल में 429 पोस्टे व् करीब करीब 18 हजार कमेन्ट के जादुई आकड़ो को छूने वाले आखिर यह ताऊ है कौन ? सवाल सभी के मन में इसी के आसपास घूम रहा है. मुंबई टाइगर किसी को घी तेल लगाने का काम नहीं कर रहा है. हम सिर्फ इस सच्चाई को स्वीकार कर रहे है की जो कोई भी हो पर यह ताऊ है कमाल का आदमी .
और मेरे इस कथन को साबित करने के लिए ताऊ डाट इन की भारी सफलता काफी है. सच्चाई को स्वीकार करना एवं सच्चाई का स्वागत करना महज प्रशंसा का द्योतक नही माना जाना चाहिए, इससे हम अपने ब्लॉग जीवन में ताऊ की तरह अनुशासन पूर्वक एवं नियमित कुछ नया कर सके यह सीख भी ले सके, यह ही हमारा मूल मकसद है इस वार्तालाप का ..
"ताऊ" के बारे मे कुछ भी लिखने से पुर्व बरबस ही मेरे मानस पटल पर एक सवाल अंकित हो रहा है। "ताऊ" कोन ? इसके मायने क्या ? क्या ताऊ लोगो कि अटूट विश्वास का दुसरा रुप है ? या ताऊ कोई विचारधारा है ? ताऊ संस्कारों का प्रतीक है ? आखिर "ताऊ" है क्या बला ?
"ताऊ" महज एक नाम नही हो सकता। "ताऊ" शब्द के साथ भारतीय लोगो की भावनाए जुडी हूई है। "ताऊ" एक विचारधारा बनकर लोगो के दिलो-दिमाग एवम रक्तवाहिनियों मे दोड रहे है। यू कहू तो अतिशयोक्ति नही होनी चाहिऐ लोगो कि आस्था का केन्द्र है "ताऊ".
मेरे विचार से ताऊ के चरित्र को निभाना और उसके साथ न्याय करना बडा ही कठीन कार्य है। कोई भी ताऊगिरी का चोगा ओढले यह सहज प्रतीत नही होता है, दुर्भर कार्य है। क्यो कि लोगो के इस सुपर हीरो ताऊ को जीवन्त बनाऐ रखने के लिऐ ताऊ को आम जीवन मे जीना पडता है, ताऊ की तरह सोचना पडता है, ताऊ को तन मन मे उतार कर ताऊ कि ऑख से दुनिया, समाज एवम दीन-दुखियो को देखना पडता है। ताऊ की तरह आम आदमी की भाषा को अपनाना पडता है।
रामदयाल कुम्हार- चम्पाकली - बीनू फ़िरंगी - अनारकली - रामप्यारी - गोटू सुनार, हीरामन, संतू गधा जैसे किरदारो से जहॉ ताऊ आम-जन की विचारधारओ एवम सभ्यताओ की पेशगी करते है, वही दुसरी और भैंस, गधा, ऊंट , चम्पा गधेडी ,सांपनाथ, उल्लू जैसे किरादारो को माध्यम बनाकर ताऊ बेजुबान प्राणीयो की आवाज बनकर लोगो मे पशु पक्षियो के प्रति प्यार जताने का सन्देश भी देते है।
वही हरयाणवी लठ ताऊ का ब्रहमाष्त्र है। जरुरत पडने पर ताऊ मेड इन जर्मन लट्ठ, का उपयोग करने मे भी नही चुकते। चतुराई, बुद्धि विलक्षणता तो ताऊ मे कुट-कुटकर भरी है। ताऊ ने चोरी , ठगाई, लूटपाट मे इतनी महारत हासिल करली है की इस बिरादरी मे ताऊ सुपरहीरो माना गया। अब सोच यह है कि संसार के हर पक्ष मे "ताऊ" मान्य है, सर्वसमर्थन प्राप्त है, तब भी प्रश्न है कि ताऊ कोन ?
यह प्रश्न जायज है... कि भॉती-भॉति के रग-रुप, सर्वगुणसपन्न, लोगो का सुपर हीरो, ताऊ के सफल किरदार को अंगीकार किस व्यक्ति ने किया। क्यो कि ताऊ के अनेक रुपों को एक अकेला व्यक्ती कैसे निभा सकता है ? ताऊ मे हजारो खुबिया है। अकेले एक व्यक्ती मे इतनी खुबिया होना और उसे कलम के माध्यम से कोरे कागज पर उकेरना और लोगो की आस्था को बनाऍ रखना बडा ही असम्भव कार्य लगता है।
यह सभी देखने मै ताऊ डॉट इन चिठठे पर गया। करीब करीब १७ दिनो तक ताऊ के पूरे चिठ्ठे को, प्रतिक्रियाओ को पढा, समझा एवम उसका विश्लेषण किया। 17 दिनो मे जब भी मैं ताऊ के चिठ्ठे पर जाता तो खूंटा , परिचयनामा, ताई, भाटिया जी, समीर जी और ज्ञानदत्त जी पांडे की टिप्पणीयां या ताउ साप्ताहिक-"ताऊ की शोले" को पढकर लोटपोट हुआ तो कही भावुक हुआ।
आखिर मे हमारी इस टीम ने 17 दिनो के अथक प्रयास के बाद यह पाया की ताऊ के विभिन्न रुपो को जीना एक व्यक्ती के बस मे नही है, फिर यह कोन है जिसने ताऊ के हर रुप को बडी ही खूबी से निभाया और जनता जनार्दन का विश्वास जीत लिया।"
P.C. Rampuria (Mudgal) श्री पी सी रामपुरीया जी जो कि ताऊ भुमिका को न्यायपुर्वक निभा रहे हैं । उनके द्वारा लिखे गऐ समय समय पर विभिन्न समयोचित लेख इतने प्रासगिक लगे कि बार बार पढने को मन करता है। उनको पढने के बाद हमने पाया कि जीवन के प्रति उनका दर्शन हमेशा सकारात्मक रहा।
उनके हर हास्य-व्यंग में कहीं ना कहीं हमारी कुरुतियों पर परोक्ष चोट है. जिस ताऊ को हम एक सीधा साधा गंवई इंसान समझकर हंसी मजाक कर लेते हैं. उस ताऊ की अर्थशाश्त्र पर गजब की पकड है. वितीय मामलों के ताऊ एक मंजे हुये खिलाडी है. पूछने पर वो बताते हैं कि अर्थशाश्त्र उनका सबसे प्रिय विषय है और हिंदी चिठ्ठाकारी में गपशप करके वो बहुत तनावरहित महसूस करते हैं.
सन्तोष-सुखी लेखन का आधार है, पर श्री पी सी रामपुरीया जी इससे एक कदम और आगे बढते है उनके अनुसार -" लेखन वही सरस है जो आशाओ, उम्मीदो की ज्योति से रोशन है। अगर लेखक का दृष्टिकोण उत्साह भरा आशावादी होगा तो आने वाले उतार चढाव, अनुकूल परिस्थिति मे समभाव का स्वतः विकास होगा और लेखकीय जीवन मे निराशा हताशा पास नही आ सकेगी। और हर एक लेखक ताऊ बनने मे सक्षम हो सकता है।
ताऊ रामपुरीया जी की लेखनी की धारा जिधर बही, अपना मार्ग स्वतः प्रशस्त करती गयी। समाज की दिशाहीनता, भटकाव , विशेषकर युवा वर्ग की लक्ष्यहीनता के प्रति ताऊ ह्रर्दय की उथल पुथल, उनकी तडप भरी झनझनाट का शोर स्पष्ट उनकी लेखनी मे सुनाई पडता है।
असंयमित लेखनी, व्याप्त भ्रष्टाचार्, कुप्रथाओ को लेकर यदा-कदा वे व्यगात्मक प्रहार करने से नही चुकते। ताऊ के लहजे मे श्री रामपुरिया जी के विचारो को आमजन की आवाज कहना निश्चित ही सराहनीय है। आजका युवा वर्ग ताऊ के विचारो को पढकर उसके निचोड से, निश्चित ही समाज को नई दिशा मिलेगी ऐसा मेरा विश्वास है।
श्री पी सी रामपुरीया जी के तरकश मे व्यंगबाणो की भरमार है। अपने परिचय मे भी उन्होंने व्यंग का सहारा लिया है। उनके व्यंगात्मक परिचय मे भी समाज के लिऐ एक सन्देश है। किसी भी चिठ्ठे पर मेरे द्वारा अभी तक पढे गये सर्वश्रेष्ठ और अपडेटेड प्रोफ़ाईल लगा मुझे ताऊजी का. आईये देखते हैं कि वो क्या लिखते हैं स्वयम के बारे में...
ताऊ बता रहे है अपने बारे मे:-
वैसे जिंदगी को हल्के फुल्के अंदाज मे लेने वालों से अच्छी पटती है | गम तो यो ही बहुत हैं | हंसो और हंसाओं , यही अपना ध्येय वाक्य है |
हमारे यहाँ एक पान की दूकान पर तख्ती टंगी है , जिसे हम रोज देखते हैं ! उस पर लिखा है : कृपया यहाँ ज्ञान ना बांटे , यहाँ सभी ज्ञानी हैं ! बस इसे पढ़ कर हमें अपनी औकात याद आ जाती है ! और हम अपने पायजामे में ही रहते हैं ! एवं किसी को भी हमारा अमूल्य ज्ञान प्रदान नही करते हैं ! ब्लागिंग का मेरा उद्देश्य चंद उन जिंदा दिल लोगों से संवाद का एक तरीका है जिनकी याद मात्र से रोम रोम खुशी से भर जाता है ! और ऐसे लोगो की उपस्थिति मुझे ऐसी लगती है जैसे ईश्वर ही मेरे पास चल कर आ गया हो
ताऊ को पसन्द क्या है ? देखे तो।
अपना प्रथम शौक है शरीफो और नेक लोगो को बिगाडना ! क्योंकी हम खुद पैदाइशी बिगडे हुये हैं. इस लिये अपनी जात बिरादरी मे बढोतरी के लिये इसको अपना मुख्य शौक बना लिया है !
दुसरा शौक है-- जिन्दगी को हलके फुलके लेना. और मजे में रहना. फोकट टेंसन लेने में विश्वास नही है !
ताऊ की Favorite Movies
अपनी जिंदगी की मूवी ही पसंद नही आयी तो दुसरे की क्या आयेगी ? अगर पसंद ही बताना जरुरी हो तो अब तक की पसंद मेरी अपनी गुजरी जिंदगी की मूवी ही है ! इसमे एक सफल फिल्म के सारे दृश्यों को मैने देखा है ! इससे बडी फिल्म कोइ बना भी नही सकता ! क्योंकी ये फिल्म सीधी उपर वाले की निर्देशित की हुयी है ! इस फिल्म मे कोइ भी सीन रिपीट नही होता बल्कि एकता कपूर स्टाईल मे चलती ही रहती है ! अब भला इसके सामने ढाई घंटे की फिल्म क्या लगेगी ?
Favorite Books
एक नही बल्कि अनेक हैं. अधिकतर लेखक दिवंगत हो चुके हैं सो किसी एक दो का नाम लेकर उनकी आत्माओं से दुश्मनी लेने से अपने मास्साब और वालदेन ने मना किया है. | वैसे तो हमने इनकी किसी भी सलाह को ना मानने की कसम खा रखी है. पर ये मानने मे कुछ हर्ज नही है क्यूंकि ऊपर कहीं स्वर्ग या नरक मे टकरा गयी तो खाम्खाह झंझंट हो जायेगी.
ताउजी की ब्लाग लिस्ट मे 200 से उपर ब्लॉग हैं जिनको वो नियमित रूप से पढ़ने की कोशीश करते है. और टिप्पणीयो के माध्यम से उनका हौंसला बढाने की पूरी कोशीश करते हैं।
ये हैं ताऊ की पसंद के कुछ चिठ्ठे :-
ताऊ पहेली के गोल्डन जुबली के उपलक्ष में
क्रमश:
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ये भी खूब रही. आज जान पाये कि ताऊ कोई पी सी मोदगिल जी हैं. ताऊ कोई एक इन्सान है यह अब भी भरोसा सा नहीं हो रहा. जरा और चैक करिये.
ताऊ की ब्लॉग लिस्ट में अपना नाम देखकर प्रसन्नता हुई. :)
बहुत बढ़िया आलेख. जारी रहिये.
ताऊ जी से मिल कर अचअछा लगा।
ताउ एक संज्ञा या सर्वनाम नही है,
एक सम्पुर्ण विचार धारा है,
सतत परिश्रम एवं निरंतरता का नाम है
हमारा ताउ को साष्टांग प्रणाम है।
ताऊ द ग्रेट को सलाम -मुझे तो पहले से ही पता था ....मैं कहता था न !
अरे वाह....!
बहुत खूब!
अब तक तो ताऊ ही ब्लॉगर्स की पोल-पट्टी खोलता था!
आज तो आपने ताऊ की ही पर्तें खोल दी और समीर जी ने तो उनका नाम भी प्रकाशित कर दिया!
चेला है भई आपका!
हम अगर लिख देते तो ताऊ का मेल या फोन आ गया होता!
दिलचस्प रहा ताऊ का परिचयनामा!
ताऊ को बधाई और आपको धन्यवाद!
समीर लाल जी! ताऊ "मोदगिल" नही हैं,
ये तो कोई पी.सी. मुदगल हैं।
इस नाम का एक शख्श इन्दौर में भी देखा गया है!
अच्छा इ बताइए...का ताऊ जी का फोटो एतना ख़राब आता है कि इ बन्दर का मुंह लगाना पड़ा....
हर दिन सुबह-सुबह जत्रा ख़राब करवाना ज़रूरी है का.....उठते हैं और यही मुंह देखते हैं....
बहुत बे-इंसाफी है......इ.....अरे अब तो बहुते दिन हो गया....एतना दिन में तो बड़का से बड़का फिल्म का सस्पेंस पता चल जाता है.....का इ फिलिम का सस्पेंस नहीं मालूम चलेगा ?????
अपना ब्लॉग का नाम लिस्ट में देख लिए हैं और खुस भी हो गए हैं..
बहुत मेहरबानी...!!
ये भी बढ़िया रहा | कुछ तो पता चला ताऊ आखिर है कौन ?
वरना हमतो पुरे एक साल से ज्यादा बिना जाने ही कि " ताऊ कौन " ताऊ के भतीजे बने घूम रहे थे |
ताऊ जी के लिए हमारा भी सुर भी ललित जी के इस सुर के साथ है
"ताउ एक संज्ञा या सर्वनाम नही है,
एक सम्पुर्ण विचार धारा है,
सतत परिश्रम एवं निरंतरता का नाम है
हमारा ताउ को साष्टांग प्रणाम है।"
महावीर भाई,
सच कहूं तो ताऊ जो भी हैं , जैसे भी हैं, मुझे उन्होंने जितना स्नेह दिया है और देते हैं उसके बाद तो वे किसी भी तरह से मेरे परिवार से अलग मुझे नहीं दिखते ...रही बात ब्लोग जगत की तो ब्लोग जगत के लिए अब ताऊ एक अनमोल धरोहर बन चुके हैं । ताऊ की सोच , उनके विचार, उनके प्रयोगों ने ब्लोग्गिंग के सारे कीर्तीमान ध्वस्त कर डाले हैं ..अब एक उदाहरण ही देखिये न ..जितने टिप्पणियां आम लोगों को उनके ब्लोग पर एक माह में भी नहीं मिलती ..उससे ज्यादा इनकी रामप्यारी एक पहेली में पा रही है ..। आज ताऊ के रूप दिखा के आपने तो आनंदित कर दिया.....अब तो बस उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेने क तमन्ना रह गई है ,,। उनकी पसंद सूची में शामिल हूं ये तो उनसे मिल रहे स्नेह से ही पता था ....। उन्हें इस सफ़लता के लिए बधाई .....और आपको आभार
क्या बात है ये ताऊ तो अपने ही कुनबे के निकले, जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया !
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