हर दुसरे दिन हिलाते रहना...
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अवकास,
ग्रीष्म,
पत्नि
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घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें।किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाए॥(बच्चा यानी पाठक, हमारे संदर्भ में तो... हर उम्र का।)
"सूरज भाई" (सूर्य) मै तेरी गर्मी से परेशान नही हु. मै परेशान हु तेरे नाम से पड़ने वाली छुटियो से. क्यों की हर साल तेरे नाम से पड़ने वाली "ग्रीष्म-अवकास" मे पत्नियों का मायके जाना हम पतियों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है !
गर्मियों में कोन पति काम करता है - कोन नही ? यह समझना जरा मुश्किल हो रहा है . क्यों की "पसीना"
मेहनत की निशानी है तेरी इस तपस भरे स्वभाव से यह पता लगाना मुश्किल है की आरामी से आरामी पति पसीने से नहाया हुआ लगता है! पति के माथे पर पसीने की बुँदे चमक रही होती है - समझो खदानों में पत्थर तोड़ आए हो बेचारा ! पति तरस रहे है पत्नी के लिए कि वो कब आए और कब छुटकारा मिले चूल्हे-चोके से..
गर्मी वास्तव में व्याम का मोसम है. जब पत्नी और बच्चे ननिहाल चले जाते है तो पति सुबह सवेरे आम और दूध पी कर दंड बैठक लगाता है.- बेचारा और करे भी क्या ? यह गर्मी की सीजन है. खिचड़ी नही तो आलू की सब्जी बनाने की असफल प्रयास करता है. कुछ नही तो "मैगी" बनाकर जरुर खा लेता है बेचारा पति ...
इसका मतलब यह हुआ की गर्मी इंसान को विद्धवान और अच्छा कुक बनने का अवसर प्रदान करता है. जवानी के समय की यादे ताजा होती है, पति एक बार फिर "यूथ होस्टल" का मजा लेते है . आसपास के होटल वाले जो साल भर मुस्कान देते थे उन्हें, अब ये (पति) और बड़ी मुस्कान देने लगते है. जब इनसे आमलेट नही बनती तो पहली बार "एलबर्ट एनस्टाईन" को मानते है . हम आमलेट नही बना सकते है - और उसने अणुबम बना दिया. थोड़ी हीन भावना उभरती है. पर पत्नी न होने के कारण अपने को पूरा पुरुष समझने की पुरानी आदत इन जख्मो पर मरहम का काम करती है.
पतियों के पीछे पत्नी सदा भूत की तरह रहती है . वे अपने पीहर जाने के पूर्व आचार भी चार -पांच किस्म के डालकर जाती है और बेचारे पति को कहकर जाती है- " हर दुसरे दिन हिलाते रहना - हाथ मत लगाना ." बेचारा!! पत्नी के जाने के बाद हिलाने के सिवाय क्या रास्ता है ....? अचार को हिलाते -हिलाते बेचारे की एक महीने में तो खुद ही हिल जाता है.
पीहर से पत्नी दिन भर मोबाइल द्वारा अपने पति को सचालित करती रहती है - "देखो, वो अचार के डिब्बे के उपर स्टील के डिब्बे मे नमकीन रखी हुए है भूख लगे तो खा लेना ", नास्ता कर लिया ? अब कहा पर हो ? तुम्हारे पीछे गानों की आवाज आ रही है ? इस तरह के हजारो सवालों से बेचारा पति का तो "गर्मी की छुटियो" के नाम पर शोषण हो रहा है!
जवानी की ढलान भी इसी मोसम में महसूस होती है. जब पत्नी की अनुउपस्थिति मे सब्जीवाली से रोज सब्जी लेने पर भी कोई काम नही बैठता तो जवान बनने के लिए मेहँदी लगाते है . लोगो के पूछने पर मेहँदी क्यों लगाई ? तो बेचारे कहते है -"ठंडक भाई , ठण्डक!!! के लिए! अब इस पगलाए पति को कोण समझाए की मेहँदी लगाने से ठंडक मिलती हो तो पंजाब के सभी लोगो को मेहँदी लगा दे! पर इंसान अपनी कमियों को सदा खासीयतो का रूप देता रहा है!
गर्मी को अलविदा कहने का ज्यो ज्यो समय नजदीक आ रहा है सूरज का गुस्सा ठंडा होता जाता है. पतियों का भी ... पर इस बार तो बाप रे बाप छपर फाड़ के गर्मी पड़ी . मानो सूरज भंयकर कोप में है. ४८ से ४९ डिग्री तापमान तवे पर रोटी सेकने जैसा है! गुस्सैया सूरज बिगडेल हाथी की भाति लोगो में त्राहिमाम-त्राहिमाम, जैसा माहोल बना रखा है. लोग तरस रहे है पानी की एक बूंद के लिए , बरसात की एक फुहार के लिए , पेड़ की ठंडी पवन के लिए , एक छोटी सी छाव के लिए ! हे सूरज ! अपने इस गुस्से को और अधिक लाल पिला मत करना नही तो घरती पर तुम्हे जल चढाने वाला कोई नही बचेगा ! और पतियों को खाना देने वाली भी .....
बेचारे पति......................!!!!
यही हास-परिहास, कहीं उपहास न बन जाए, यह एक व्यंग्यकार की बड़ी जिम्मेदारी होती है। ध्यान न दिया जाए तो आक्रामक या बेहद करुण या कठोर होते हुए भी इसे देर नहीं लगती ... कभी-न-कभी कुछ पढ़ते-लिखते, आम जिन्दगी से जीते- गुजरते हम सभी ने यह महसूस किया ही होगा...?
प्रतिक्रिया देना मत भूलिएगा। सदैव की भांति ही, पत्र और प्रतिक्रियाओं का... आपके स्नेह,सहयोग व सुझाव का, बेसब्री से इन्तजार रहता है! - मुंबई टाइगर
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सताये हुए पति लगते हैं मेरे जैसा
हम कुछ नहीं कहेंगे...शुद्ध हास्य मान कर हंस दिये.
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