धनचक्कर गुरु हम स्वय है।

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 GURU
फो पर सारथी वाले शास्त्रीजी से बातचीत हो रही थी। शास्त्रीजी ने पुछा-" ओर धन्धा-पानी कैसे चल रहा है ? " 
मैने कहा-"गुरुदेव मन्दा है।"  
शास्त्रीजी ने राय दी क्यो ना आप किसी अदद ज्योतिष गुरु को पकडे, और कुण्डली बताए।" 
मैने विस्मय भाव से कहा- "गुरु! इसके लिए भी "गुरु" बनाना पडेगा ?" 
अक्सर टीवी मे ज्योतिषगण चोबिसो घण्टे कुछ ना कुछ समझाते ही मिलते है। मुझे लगा अब इन महाज्ञानीयो से बच पाना नामुमकिन ही है।
लतः मै अपनी जन्म कुण्डली समेत एक लेपटॉपधारी पन्डितजी की दुकान पर गया तो वह उल्ट-पल्ट कर बोलते गए- " वत्स तुम्हारा फेस देखकर ही मालुम दे रहा है कि गुरु के प्रभाव का जातक होने के चलते मामला अत्यन्त धातक है, अगले माह से गुरु वक्रि है, आगे सकट ओ‍र भी प्रचन्ड है, आठ महिने के बाद गुरु फिर से अपनी मूलमार्गी चाल मे लोट आएगा, उसके बाद ही शुभ फल देगा, सब ग्रहो की चाल का परिणाम है बच्चा।" अगर अनिष्ट फल से बचना चाहते हो तो अपने घर पर पुजा रखवा लो।"
मै मन ही मन बोला,-" पण्डितजी महाराज! ग्रहो की चाल का तो मुझे पता नही, लेकिन आपकी चाल जरुर मेरी समझ मे आने लगी है।" 
बहराल, मै इतनी जटिल विधा पर शका करके पाप का भागीदार नही बनना चाहता था। सो चुप ही रहा। धर्म मै विश्वास जरुरी है। फिर भीतर भीतर कही यह डर था कि जब बडे बडे तक अपने गुरुओ की वक्रि चाल के लपेटे मे आ जाते है तो मेरी क्या ओकात?
हा गया है प्रबल गुरु मिल जाए तो फलदायी है अन्तथा कष्ट ही कष्ट है। 
बहराल, ये पण्डितजी तो गुरुओ के भी गुरु निकले। 
झटपट उन्हे दक्षिणायित किया और मै वहॉ से फुट लिया।
पुनः घर आकर 29"  बुद्धु बक्से (टीवी ) का रिमोर्ट  लेकर चैनलो के मनके जपने लग गया हू। किसी नए गुरु की तलास मे  हू। 
सा भी नही है कि मेरा "गुरु-चोट की चपेट मे आना पहळी बार हुआ है, विघाज्ञान का श्री गणेश गुरुजी के डन्डे से ही हुआ था। आज भी हाथ की हथेली पर तकदीर की लकीरो से ज्यादा सन्टी के निशान ज्यादा है।  
जब भी मेरे मित्र जयपुर वाले आशिषभाई खण्डेलवाल पुछते है कि -"कहो गुरु", का हाल है ?" मुझे तत्काल अपने स्कुल के गुरुदेवगणो की तुडाई याद आ जाती है। उस टाइम नारा लगाए करते थे -

"छत्रन गुरु की क्या पहचान, 
हाथ मे सोटा, मुह मे पान।"

गुरु गाथा मे वे नागपुर वाले गुरुजी भी आते है, जिनकी लाठी आज भी बीजेपी वालो को सियासत की वैतरणी फन्दवाने के काम आती है।

इस दुनिया मे एक से एक गुरु हुए है और एक से बढकर एक गुरुघन्टाल भी हुए है।
सच्चे भी कच्चे भी।  
धर्म गुरु भी।  
अधर्म गुरु भी।  
डान्स के गुर।  
रोमास के गुरु।  
म्यूजिक के गुरु।  
अखाडे के गुरु।


 खैर, मेरे ताजा-ताजा उपजे कनपुरिया धनचक्करगुरु ने मुझे  गुरुमन्त्र दिया है कि फसना ही चाहता हू तो "टेक्स गुरुओ" के चक्कर मे फसू अथवा शेयर गुरु की चरण मे जाऊ।

योग गुरु की बॉहे थामू। मैनेजमेन्ट गुरु से कला सीखू।  आज बाजार मे फैशन गुरु से लगाकर ई गुरु
ब्लोग गुरु, तमाम   ब्रान्ड के गुरु उपल्ब्ध है। 

 इस लेख को व्यग के रुप मे पिरोया गया है।
जाने अनजाने किसी को कष्ट हुआ हो तो मै  क्षमा मागता हू।

14 comments

संजय बेंगाणी 18 जुलाई 2009 को 2:24 pm बजे

क्या बात है गुरू!!

Shastri JC Philip 18 जुलाई 2009 को 3:15 pm बजे

हे प्रभु आप किसी दिन मुझे मुसीबत में डाल देंगे. आप को जो राय रहस्य में दी थी उसे पब्लिक करने की क्या जरूरत थी.

अब समीर आश्रम, ताऊ आश्रम, भाटिया आश्रम आदि से फतवे आने शुरू हो जायेंगे कि उनके एक साथी गुरू का नाम क्यों पब्लिक हो रहा है.

आईंदा सुझाव देने से पहले आप से लिखवा लेंगे और जमानत भी जमा करवा लेंगे. गडबड किया तो जमानत जब्त कर लिया जायगा.

अरे हां चित्र नहीं जमा. एक ईपत्र मुझे भेज दें तो आपको मेरा कार्टून भेज दिया जायगा जिस पर आप किसी भी तरह का कलमचंपी कर सकते हैं.

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

स्वप्न मञ्जूषा 18 जुलाई 2009 को 3:46 pm बजे

आह्ह्ह्ह्ह, इ तो पूरा गुरु-पुराण सुना गए आप...
बहुत अच्छे...

Paridhi Jha 18 जुलाई 2009 को 3:48 pm बजे

very beautifully written
words seem to have flown from the pen like one was chasing the other

:)
regards

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) 18 जुलाई 2009 को 4:19 pm बजे

bahut khoob.. shaandaar likha hai aapne..

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 18 जुलाई 2009 को 5:53 pm बजे

भई जमाना भी आजकल घनचक्कर गुरूओं का ही है!!!
बहुत बढिया!!!!!

विवेक रस्तोगी 18 जुलाई 2009 को 6:04 pm बजे

बहुत बढ़िया गुरु...

Himanshu Pandey 18 जुलाई 2009 को 6:28 pm बजे

आपकी गुरुता अक्षुण्ण रहे ।

इष्ट देव सांकृत्यायन 18 जुलाई 2009 को 6:55 pm बजे

आप भी कुछ कम गुरु नहीं लगते!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` 18 जुलाई 2009 को 8:07 pm बजे

सच्चे गुरु ..अपनी कृपा का आशिष देने के लिये स्वयम शिष्य का चुनाव करते हैँ जिस तरह परमहँस रामकृष्ण ठाकुर जी ने नरेन्द्र मेँ ,
विवेकानँद को पहचाना
और उन्हेँ
मुक्ति मार्ग पर आगे बढाया था -
- लावण्या

PN Subramanian 18 जुलाई 2009 को 9:48 pm बजे

गुरु घंटाल अधिक हैं. अच्छा व्यंग. आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 18 जुलाई 2009 को 10:08 pm बजे

भैय्या जी!
हमें भी कोई गुरू घण्टाल बता देना।

sandhyagupta 20 जुलाई 2009 को 10:47 am बजे

Dhanya gurudev!

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर 20 जुलाई 2009 को 3:28 pm बजे
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